उत्तराखंड में वैज्ञानिकों ने मधुमक्खी पालन में उत्कृष्टता लाने के लिए एक नई खोज की है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए गोमूत्र का उपयोग किया है, जो मधुमक्खियों को सूक्ष्मजीवियों जनित बीमारियों से बचाएगा और उनका पालन-पोषण अच्छे ढंग से हो सकेगा।
यहाँ के गोविंदवल्लभ पंत कृषि एवं तकनीकी विवि के शोधार्थियों ने गोमूत्र की विशेषता बताते हुए कहा है कि यह उनके लालन-पालन में महती भूमिका निभा सकता है। इन शोधार्थियों में से एक रुचिरा तिवारी इस विषय पर पिछले तीन वर्षों से अध्ययन कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि हमने मधुमक्खी पालन में गोमूत्र का प्रयोग किया और देखा कि 7-8 दिनों में पैदा हुई मधुमक्खियाँ काफी स्वस्थ थीं। इस प्रयोग को दोनों प्रकार की मधुमक्खियों पर किया गया था, जिनमें रानी मक्खी (जो अंडे देती है) और मजदूर मक्खियाँ शामिल हैं, जो शहद इकट्ठा करने के काम से लेकर सुरक्षा करने तक का काम देखती हैं।
गोमूत्र के प्रयोग के तरीके पर रुचिरा ने बताया कि यह मूत्र हम उन पर छिड़क देते हैं, जिसके बाद वो ज्यादा फुर्ती में दिखाई देती हैं। इससे मक्खी के अंडों में से लार्वा भी स्वस्थ होकर निकलते हैं और बचे अंडे भी अच्छी स्थिति में रहते हैं।
रुचिरा के अनुसार मधुमक्खी पालन में मक्खियों को लकड़ी के बक्से के अंदर रखा जाता है। यह एक कृत्रिम व्यवस्था है जिसमें उन्हें सूक्ष्मजीवी जनित बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है। यह मूत्र उन्हें बीमारियों से बचाने में सबसे अधिक कारगर सिद्ध होता है।
इन बीमारियों से बचाव के लिए दवा के उपयोग पर उन्होंने कहा कि दवाएँ बीमारियों के लिए जिम्मेदार कीटाणुओं को तो मार देती हैं, लेकिन उनका मक्खियों के लार्वा पर खराब असर होता है, जिससे उनके उत्पादन पर फर्क पड़ता है। गोमूत्र का उपयोग करने से इन दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0807/10/1080710003_1.htm
Monday, July 14, 2008
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2 comments:
Very informative.Plz post more.
bahut upyogi jaankari..aabhar
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