Monday, July 14, 2008

मधुमक्खी पालन में गोमूत्र लाभदायक

उत्तराखंड में वैज्ञानिकों ने मधुमक्खी पालन में उत्कृष्टता लाने के लिए एक नई खोज की है। वैज्ञानिकों ने इसके लिए गोमूत्र का उपयोग किया है, जो मधुमक्खियों को सूक्ष्मजीवियों जनित बीमारियों से बचाएगा और उनका पालन-पोषण अच्छे ढंग से हो सकेगा।

यहाँ के गोविंदवल्लभ पंत कृषि एवं तकनीकी विवि के शोधार्थियों ने गोमूत्र की विशेषता बताते हुए कहा है कि यह उनके लालन-पालन में महती भूमिका निभा सकता है। इन शोधार्थियों में से एक रुचिरा तिवारी इस विषय पर पिछले तीन वर्षों से अध्ययन कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि हमने मधुमक्खी पालन में गोमूत्र का प्रयोग किया और देखा कि 7-8 दिनों में पैदा हुई मधुमक्खियाँ काफी स्वस्थ थीं। इस प्रयोग को दोनों प्रकार की मधुमक्खियों पर किया गया था, जिनमें रानी मक्खी (जो अंडे देती है) और मजदूर मक्खियाँ शामिल हैं, जो शहद इकट्‍ठा करने के काम से लेकर सुरक्षा करने तक का काम देखती हैं।

गोमूत्र के प्रयोग के तरीके पर रुचिरा ने बताया कि यह मूत्र हम उन पर छिड़क देते हैं, जिसके बाद वो ज्यादा फुर्ती में दिखाई देती हैं। इससे मक्खी के अंडों में से लार्वा भी स्वस्थ होकर निकलते हैं और बचे अंडे भी अच्छी स्थिति में रहते हैं।

रुचिरा के अनुसार मधुमक्खी पालन में मक्खियों को लकड़ी के बक्से के अंदर रखा जाता है। यह एक कृत्रिम व्यवस्था है जिसमें उन्हें सूक्ष्मजीवी जनित बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है। यह मूत्र उन्हें बीमारियों से बचाने में सबसे अधिक कारगर सिद्ध होता है।

इन बीमारियों से बचाव के लिए दवा के उपयोग पर उन्होंने कहा कि दवाएँ बीमारियों के लिए जिम्मेदार कीटाणुओं को तो मार देती हैं, लेकिन उनका मक्खियों के लार्वा पर खराब असर होता है, जिससे उनके उत्पादन पर फर्क पड़ता है। गोमूत्र का उपयोग करने से इन दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0807/10/1080710003_1.htm

Saturday, July 12, 2008

उत्तराखंड में तीन ग्रामीण बैंक केवल महिलाओं के लिए होंग

उत्तरांचल ग्रामीण बैंक उत्तराखंड में महिलाओं के लिए विशेषतौर पर तीन नई शाखाएं खोलने की योजना बना रही है। इनमें से देहरादून के इंदिरा नगर में स्थापित एक शाखा ने अपना काम भी करना शुरू कर दिया है जिसमें कि सभी महिला कर्मचारी हैं।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं के लिए खोले गए इस बैंक में सिर्फ महिलाओं को ही खाता खोलने की अनुमति है जोकि उत्तराखंड में अपने आप में यह एक अनोखी पहल है। यह इस बैंक की 121वीं शाखा है और पौड़ी और पिथौरागढ़ में ऐसे ही अन्य शाखाएं खोली जा रही हैं। नाबार्ड की मदद से उत्तराखंड ग्रामीण बैंक की मुख्य शाखा में महिलाओं के लिए विशेष केन्द्र खोला गया है जिसका कि उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक और सामजिक रूप से संपन्न बनाना है।
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=5565


उत्तराखंड ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष थ्रीश कपूर ने कहा कि हमारे इस विशेष कदम का उद्देश्य इस पर्वतीय राज्य की महिलाओं के प्रति विशेष सम्मान का परिचय देना चाहते हैं। उत्तरांचल ग्रामीण बैंक की स्थापना वर्ष 2006 में अलकनंदा बैंक, गंगा-यमुना बैंक और पिथौरागढ़ बैंक के विलय के पश्चात की गई थी। महिलाओं केलिए विशेष तौर पर खोले इस बैंक का प्रमुख उद्देश्य स्वयं-सहायता समूह और गैर-सरकारी संगठनों का ध्यान अपनी और आकर्षित करना है जिसमें कि महिलाओं की भागीदारी होती है।

Wednesday, June 18, 2008

पनबिजली से तौबा की तैयारी

उत्तराखंड सरकार उत्तरकाशी और गंगोत्री नदी के बीच पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण कार्य को बंद करने पर विचार कर रही है।

मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने कहा है कि यदि केन्द्र सरकार उत्तराखंड की बिजली संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए तैयार हो जाती है तो उनकी सरकार पाला मनेरी और भैरो घाटी परियोजना को स्थगित करने के लिए तैयार है।

खंडूड़ी इस संबंध में अंतिम निर्णय लेने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर रहे हैं। इस बीच भगीरथी पर पनबिजली परियोजनाओं के विरोध में राज्य के दिग्गज पर्यावरणविद् डॉ जी डी अग्रवाल का आमरण अनशन पांचवे दिन भी जारी रहा। माना जा रहा है कि चौतरफा दबाव बढ़ने के बाद सरकार ने भागीरथी पर पनबिजली परियोजनाओं के विकास से तौबा करने का पूरा मन बना लिया है।

राज्य के मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी ने इस बात का संकेत दिया है कि अगर राज्य की बिजली आपूर्ति का जिम्मा केंद्र सरकार ले तो इस पवित्र नदी पर पनबिजली परियोजनाओं को रोकने में उन्हें कोई परेशानी नही है। लेकिन खंडूड़ी ने एक बात स्पष्ट तौर पर कही है कि चूंकि लोहारी नागपाला पर चल रही 600 मेगावाट की पनबिजली परियोजना एनटीपीसी के जिम्मे है, इसलिए उसे बंद करने का निर्णय भी केंद्र सरकार को ही लेना है।

विरोध को समर्थन

खंडूड़ी का बयान ऐसे समय में आया है जब भागीरथी पर पनबिजली प्रोजेक्ट पर विरोध कर रहे अग्रवाल को विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार ने समर्थन देने की बात की थी।

भागीरथी पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं के मामले पर गरमाती राजनीति के बाद मुख्यमंत्री ने इस तरह का बयान देकर नरम रवैया अपनाने का संकेत दिया है। अग्रवाल ने शुक्रवार से भागीरथी नदी के प्रमुख घाट मणिकर्णिका घाट पर इस प्रोजेक्ट को बंद करने की मांग करते हुए आमरण अनशन जारी किया था। इस समय उनकी हालत गंभीर बनी हुई है।

विश्व हिंदू परिषद ने इस बावत अपने केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में यह निर्णय लिया है कि वे अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में भागीरथी को बचाने के लिए अभियान चलाएंगे। उनका मानना है कि गंगा की शुद्धता का मामला पूरे देश के लिए एक अहम मसला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित संगठन हिंदू जागरण मंच ने भी इस मसले पर अग्रवाल के अनशन का समर्थन करने का निर्णय लिया है।

इसके पहले द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद ने भी भागीरथी को बांधों से घेरने का विरोध किया था। इस विरोध का समर्थन करने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सुंदर लाल बहुगुणा, एम सी मेहता, राजेन्द्र सिंह भी अग्रवाल के साथ खुले तौर पर आ गए है। भागीरथी नदी पर बनने वाले बांधों में पाला मनेरी (480 मेगावाट), लोहारी नागपाला (600 मेगावाट), भैरों घाटी (381 मेगावाट), और जड़ गंगा (200 मेगावाट) आदि प्रमुख हैं।

ऊर्जा राज्य बनने का सपना

उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में पर्यावरणविद् 'भागीरथी बचाओ' अभियान चला रहे हैं और इस नदी पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सरकार का विरोध कर रहे हैं।

उत्तराखंड देश के सबसे तेजी से उभर रहे राज्यों में से एक है। यह राज्य 'ऊर्जा राज्य' के रूप में काफी तेजी से विकसित हो रहा है। राज्य सरकार आने वाले तीन से दस साल में पनबिजली परियोजना के जरिए 25,000 से 30,000 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की योजना बना रही है।

उल्लेखनीय है कि इस पहाड़ी राज्य में बिजली कारोबार के लिए रिलायंस एनर्जी, जीवीके, जीएमआर, एनएचपीसी, टीएचडीसी और एनटीपीसी जैसी बड़ी कंपनियां होड़ में हैं। लेकिन राज्य में बांधों को लेकर लोगों में विरोध बढ़ रहा है। राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ जिले से लेकर गढ़वाल में चमोली तक, जितनी भी नई परियोजनाएं बनी हैं, उससे हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा। यही नहीं, कई शहरों और गांवों के लिए ये बांध मौत की घंटी भी साबित हुए हैं।

पर्यावरणविदों ने आरोप लगाया कि भागीरथी नदी पर बनने वाली परियोजनाएं नदी को खा जाएंगी। इन परियोजनाओं के तहत जो सुरंगें बनने वाली हैं, उनसे यहां की स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। उत्तराखंड की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं और वे यहां बनने वाले बांधों को लेकर काफी सहमे हुए हैं।

अगर यहां निर्माण कार्य शुरू हो जाता है तो वे बेघर हो जाएंगे। भागीरथी नदी पर बनने वाली परियोजनाओं और उससे हजारों लोगों के बेघर होने की आशंका के मद्देनजर पर्यावरणविद् बीते तीन महीनों से राज्य के विभिन्न शहरों में रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

अंधेरा फैलाता तरल सोना

पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े लोग बांध में जमा पानी को तरल सोने की संज्ञा देते हैं लेकिन इस सोने को जमा करने के लिए टिहरी में करीब एक लाख लोगों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी थी।

अब उत्तराखंड सरकार ने भी कह दिया है कि वह टिहरी जैसी परियोजनाओं के पक्ष में नहीं है। राज्य के पिथौरागढ़ जिले में 280 मेगावाट की धौलीगंगा परियोजना की राह में आने वाले अलीगढ़ गांव और उसके 24 परिवारों को उखड़ना पड़ा था। अलीगढ़ से 50 किमी की दूरी पर केंद्र सरकार अब 6,000 मेगावाट की पंचेश्वर पनबिजली परियोजना के निर्माण कार्य की योजना बना रही है।

यह परियोजना भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी पर बनाया जाएगा। यह परियोजना टिहरी बांध के आकार की तीन गुनी होगी। यह आशंका जताई जा रही है कि इस परियोजना के निर्माण से करीब 80,000 लोग बेघर हो जाएंगे। यही नहीं, चमोली जिले के लोग भी विशाल सुरंग के निर्माण को लेकर काफी आक्रोशित हैं। इसके अलावा जोशीमठ के नजदीक अलकनंदा नदी पर भी एक मेगा प्रोजेक्ट की वजह से जोशीमठ नगर के लिए समस्या उत्पन्न हो गई है।

भागीरथी पर बनने वाले बांध

परियोजना का नाम क्षमता
पाला मनेरी 480 मेगावाट
लोहारी नागपाला 600 मेगावाट
भैरो घाटी 381 मेगावाट
जड़ गंगा 200 मेगावाट

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4693

Friday, June 13, 2008

रेकॉर्ड तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं उत्तराखंड

उत्तराखंड की प्रसिद्ध चार धाम यात्रा में इस साल रेकॉर्ड तीर्थयात्री आ रहे हैं। अभी तक आने वाले यात्रियों का आंकड़ा 10 लाख पहुंच चुका है। दूसरी ओर , प्रसिद्ध सिख तीर्थ हेम कुंड साहिब के कपाट खुल जाने के साथ पंजाब, हरियाणा सहित विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है।

उत्तराखंड की प्रसिद्ध चार धाम तीर्थ यात्रा इस समय चरम पर है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर देश ही नहीं विदेशों से भी तीर्थ यात्री भारी संख्या में आ रहे हैं। इस यात्रा के लिए राज्य सरकार द्वारा बड़े स्तर पर प्रबंध किए गए हैं। इस बार सरकार ने दो नई व्यवस्थाएं की हैं। इनमें से एक व्यवस्था इमरजेंसी रिस्पांस सेवा की है। इसके अंतर्गत कोई दुर्घटना होने अथवा स्वास्थ्य की गंभीर समस्या या अग्निकांड की स्थिति में टेलिफोन पर 108 नंबर डायल करने पर आधे घंटे के अंदर एंबुलेंस घटना स्थल पर पहुंच जाएगी। इसके अलावा पर्यटन पुलिस को पहली बार यात्रा मार्ग पर तैनात किया गया है।

रोचक बात यह है कि हेमकुंड जाने वाले यात्रियों में कई लोग मोटर साइकिलों पर आ रहे हैं। इसके अलावा बहुत से यात्री ट्रकों पर आ रहे हैं। इस बीच केदारनाथ में कुछ यात्रियों को अलग से दर्शन कराने को लेकर पंडों व पीएसी जवानों के बीच विवाद अब सुलझा लिया गया है। अब वी.आई.पी. यात्रियों का चिह्नीकरण करने की प्रक्रिया तय की गई है। वहीं पुलिस चौकी प्रभारी को बदल दिया गया है।

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3104532.cms

बड़े पनबिजली संयंत्रों से उत्तराखंड को है परहेज

दिनो-दिन बुलंद होते 'भागीरथी बचाओ' के नारे के साथ ही देश के जाने-माने पर्यावरणविद् जी डी अग्रवाल और उनके तमाम साथी पिछले दिनों अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर चले गए।

इसके एक दिन बाद उत्तराखंड सरकार ने कहा कि वह राज्य में बनने वाली बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के पक्ष में नहीं है। राज्य के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार सिर्फ उन परियोजनाओं को मंजूरी देगी जो प्राकृतिक रूप से बहती नदियों पर बनाई जानी है और टिहरी जैसी बांध परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी जाएगी।

गांधीवादी विचारों का अनुसरण करने वाले 76 वर्षीय अग्रवाल चित्रकूट के रहने वाले हैं। देश की पवित्र नदियों में से एक भागीरथी पर एक के बाद एक बन रहे पनबिजली संयंत्रों के खिलाफ अग्रवाल और उनके साथी ने पिछले दिनों राज्य के उत्तरकाशी में अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। अग्रवाल के साथ इस भूख हड़ताल में राजेंद्र सिंह, गोविंदाचार्य, सुनीता नारायण, वंदना शिवा और एम सी मेहता जैसे देश के जाने-माने पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।

जिस दिन से अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल शुरू की, उसे अग्रवाल ने 'गंगा दशहरा' का नाम दिया है। अग्रवाल ने कहा कि अगर ऐसे ही पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी मिलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश की सबसे पवित्र नदी भागीरथी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।

उल्लेखनीय है कि राज्य में जो पनबिजली परियोजानाओं का निर्माण किया जाना है उनमें- पाला मनेरी, मनेरी भाली फेस-11, लोहरी नागपाल, कोटेश्वर, भैरव घाटी और जद गंगा आदि शामिल हैं। इन परियोजनाओं से पर्यावरण के लिए भी समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4528

कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू

कैलाश मानसरोवर के लिए 37 यात्रियों का एक दल शुक्रवार को राजधानी से रवाना हुआ। इस दल में एक संपर्क अधिकारी भी है।

इस वर्ष की कैलाश मानसरोवर यात्रा का यह पहला जत्था है। यात्रियों की रवानगी में 13 दिन का विलंब हुआ तथा पहले तय किए दो जत्थों की यात्रा नहीं हो पाई। चीन सरकार ने घरेलू कारणों का हवाला देते हुए यात्रा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया था। यात्रियों की रवानगी के अवसर पर उत्तराखंड के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रकाश पंत और सचिव राकेश शर्मा उपस्थित थे। ओम के मंत्रोच्चार और शंख ध्वनि के बीच यात्री रवाना हुए। राज्य सरकार की ओर से यात्रियों को पूजन सामग्री और रुद्राक्ष माला प्रदान की गई। इस यात्रा का संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम कर रहा है। यात्रियों का चयन और यात्रा कार्यक्रम विदेश मंत्रालय ने तय किया है।

उत्तराखंड सूचना केंद्र की एक विज्ञप्ति के अनुसार दिल्ली से कै लाश मानसरोवर और फिर वापसी की कुल यात्रा अवधि 26 दिन है। इस यात्रा के लिए कुमाऊं में धारचुला आधार शिविर हैं तथा आगे गाला, बूंदी, गुंजी, कालापानी और नामीढांग में कुल पांच शिविर बनाए गए हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4539360/

पड़ोसियों से बिजली की साझेदारी

कुछ दिन पहले तक दूसरे राज्यों को बिजली बेचने की योजना बना रही उत्तराखंड सरकार पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर बिजली का साझा करने की इच्छुक जान पड़ती है।

राज्य सरकार द्वारा संचालित उत्तराखंड जल विद्युत निगम बिजली सचिव को प्रस्ताव भेज चुकी है। पॉवर ट्रेडिंग कार्पोरेशन (पीटीसी) और विनर्जी इंटरनैशनल ने राज्य से बिजली खरीदने की मंशा जाहिर की है।

बिजली विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य से बिजली बेचने के संबंध में कोई भी फैसला मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा ही लिया जाएगा। मुख्यमंत्री के पास ही बिजली मंत्रालय का प्रभार है।' अधिकारी ने बताया, 'फिलहाल हम लोग पड़ोसी राज्यों के साथ बिजली साझा में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। बिजली बेचने आदि के बारे में हम लोग आगे सोचेंगे।'

पीटीसी राज्य सरकार से 7 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदने के लिए तैयार है। उसी वक्त विनर्जी ने भी निगम से बिजली खरीदने के लिए प्रस्ताव दिया था। विनर्जी ने 1 जून से पांच महीने के लिए 120 मेगावाट बिजली खरीद का प्रस्ताव किया। निगम 150 मेगावाट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन करती है। विनर्जी निगम से 5 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीदना चाहती है।

निगम के अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद ने बताया कि इन प्रस्तावों को सरकार के पास भेजा जा चुका है। इस पर सरकार अंतिम फैसला करेगी। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड का दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के साथ बिजली का साझा करने संबंधी समझौता है। वह अपनी बिजली नहीं बेचता है। वैसे उत्तराखंड उत्तरी ग्रिड को करीब 50 लाख यूनिट बिजली सप्लाई करता है।

प्रसाद ने बताया, 'मेरा मानना है कि पॉवर ट्रेडिंग कारपोरेशन जैसी बिजली कंपनियों को बिजली बेचना अच्छा सौदा हो सकता है।' निगम की स्थापित क्षमता 1,300 मेगावाट की है और वह वर्तमान में 770 मेगावाट उत्पादन करता है। निगम ने 2012 तक अपनी स्थापित क्षमता को 1,880 मेगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। सरकार ने राज्य में जलविद्युत को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना बर्नाई है। इसके तहत छोटी पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिए सहायता भी दी जा रही है।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4403

पांच कंपनियों के नाम छांटे गए

उत्तराखंड सरकार ने पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए पांच कंपनियों के अभिरूचि पत्रों को छांटा है।

उत्तराखंड सरकार की योजना कुमाऊं क्षेत्र में बसे इस शहर में हवाई अड्डे को विकसित करने की है। इसके अलावा सरकार की राज्य के सभी जिलों में हैलीपैड विकसित करने की भी योजना है।

राज्य के नागरिक उड्डयन सचिव पी सी शर्मा ने कहा है कि पिथौरागढ़ हवाई अड्डे को विकसित करने के लिए हमने पांच कंपनियों की पहचान की है। उनका कहना है कि इन कंपनियों को कहा गया है कि ये अगले एक महीने के भीतर अपनी तकनीकी और वित्तीय बोलियां सरकार को भेज दें। शर्मा का कहना है कि सरकार ने इस हवाई अड्डे को विकसित करने के लिए 30 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।

शुरूआत में वित्त मंत्रालय ने अभिरूचि पत्रों को आमंत्रित करने पर सवाल उठाया था। मंत्रालय ने नागरिक उड्डयन विभाग को सुझाव दिया था कि पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए विभाग को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिये काम करना चाहिए।

लेकिन एक उच्च स्तरीय समिति की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि किसी भी कंपनी ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना में रूचि नहीं दिखाई है। इस समिति का मानना था कि इसके लिए केवल अभिरूचि पत्र ही एकमात्र विकल्प है।

कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए पिछले साल सरकार को 12 अभिरूचि पत्र प्राप्त हुए। उत्तराखंड की कंपनियों के अलावा मुंबई के अटलांटा समूह ने भी इस परियोजना में रूचि दिखाई है।

हालांकि शर्मा ने उन कंपनियों का नाम नहीं बताया है जिनको इस परियोजना के लिए छांटा गया है। सरकार ने अभी तक पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के लिए जमीन अधिग्रहण करने में 22 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। पिथौरागढ़ हवाई अड्डे को 48 से 72 सीटों वाले विमान के परिचालन के लिए विकसित किया जा रहा है।

हवाई अड्डे को विकसित करने की कड़ी में 4800 मीटर लंबा गलियारा बनाया जाएगा। एक अलग टर्मिनल भी बनाया जाएगा। इसके अलावा सरकार की योजना चमोली और उत्तरकाशी जिलों में हवाई पट्टी को भी उन्नत करने की भी है। अपनी भौगोलिक स्थितियों की वजह से इन पट्टियों पर 20 से 50 सीटों वाले विमानों का परिचालन करना भी मुश्किल है। राज्य के 13 जिलों में हैलीपैड बनाने का काम भी अभी दूर की कौड़ी नजर आ रहा है।

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चारधाम की यात्रा में उमड़े श्रद्धालु

उत्तराखंड में पावन चारधाम की यात्रा जोरों पर है और प्रतिदिन हजारों तीर्थयात्रियों के जत्थे इन धामों पर पहुँच रहे हैं।

इस देवभूमि पर देश के तमाम भागों के लोग भजन-कीर्तन करते हुए बद्री, केदार, गंगोत्री, यमुनोत्री के पावन दर्शन करने के लिए चले आ रहे हैं।

सर्दियों में बर्फ से ढँके रहने वाले इस इलाके में मई के महीने में बद्रीनाथ, केदारनाथ के कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। हर वर्ष लाखों लोग मोक्ष प्राप्ति की इच्छा लिए दूर-दूर से यहाँ आते हैं।

इस बार यात्रियों और स्थानीय नेताओं ने यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की कमी की शिकायत की है। यात्रियों का कहना है कि इलाके में चोरों और जेबकतरों की भरमार है जो यात्रियों का सामान लूट लेते हैं।

एक स्थानीय भाजपा नेता ने इस संबंध में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने की अपील की है।

http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0805/22/1080522043_1.htm

पहाड़ पर अखबारों की जंग तेज

अखबारों की कीमतों में कमी करने को लेकर उत्तराखंड में जबर्दस्त प्रतियोगिता छिड़ी हुई है। पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अखबार कंपनियों ने कीमतों में 33 फीसदी तक की कटौती की है।

अखबार की कीमतों में कमी करने की फेहरिस्त में देश के दो बड़े मीडिया घराने एचटी मीडिया लिमिटेड और सहारा इंडिया ग्रुप, अमर उजाला और दैनिक जागरण के नाम शामिल हैं।

बीते दिनों एचटी मीडिया लिमिटेड ने घोषणा की कि वह अपने हिन्दी अखबार 'दैनिक हिन्दुस्तान' की कीमत में 1 रुपये की कटौती करेगा और अब अखबार तीन रुपये की जगह सिर्फ दो रुपये में मिलेगा।

दैनिक हिन्दुस्तान ने अखबार को लोकप्रिय बनाने और उसकी बिक्री को बढ़ावा देने के लिए शहर के कुछ इलाकों में अखबार की मुफ्त प्रतियां बांटने का भी फैसला किया है। दैनिक हिन्दुस्तान ने अधिक से अधिक पाठकों को रिझाने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में रोड शो का आयोजन, उपहार बांटने और अन्य अभियान भी चलाएं हैं। उल्लेखनीय है कि हाल ही में एचटी मीडिया लिमिटेड ने दैनिक हिन्दुस्तान को देहरादून से लॉन्च किया था।

इसके अलवा, सहारा इंडिया ग्रुप ने भी अपने हिन्दी दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' की कीमत में 33 फीसदी की कटौती की है। अब यह अखबार दो रुपये में मिलेगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सहारा को देहरादून में पिछले साल अक्टूबर में लॉन्च किया गया था। उल्लेखनीय है कि इस पहाड़ी राज्य में अमर उजाला और दैनिक जागरण का मार्केट बहुत बड़ा है। अब राज्य में हिन्दुस्तान और राष्ट्रीय सहारा जैसे अखबार लॉन्च हो चुके हैं और उनकी कीमतें भी घटा दी गई है।

इसके मद्देनजर अमर उजाला और दैनिक जागरण ने भी कीमतों में कटौती कर दी है। अब ये दोनों अखबार दो रुपये में मिलेंगे। संवाददाताओं द्वारा इन दोनों अखबारों के मार्केटिंग अधिकारियों से पूछे जाने पर कि क्या किसी भय की वजह से उन्होंने कटौती की है तो उन्होंने इस विषय पर कुछ भी कहने से मना कर दिया।

जागरण प्रकाशन लिमिटेड के निदेशक धीरेंद्र मोहन ने बताया, 'क्योंकि पेट्रोलियम प्रोडक्टों की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है इस लिए हमलोगों ने अखबार की कीमत को तीन रुपये की जगह दो रुपये में बेचने का फैसला किया है।' बाजार सूत्रों ने बताया है कि ज्यादातर बड़े समाचार पत्र पाठकों को रिझाने के लिए आक्रामक योजनाएं तैयार कर रहे हैं। इस बीच चंडीगढ़ स्थित ट्रिब्यून ने भी पाठकों में अपनी पैठ बढाने के लिए स्थानीय खबरों के लिए अलग से परिशिष्ट निकालने की योजना बनाई है।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4400

पेड़ लगाना ही है जिनकी जिंदगी का मकसद

84 साल की उम्र में दामोदर राठौर अगर कुछ और साल जीने की ख्वाहिश रखते हैं तो सिर्फ इसलिए कि वह कुछ और पेड़ लगा सकें। वह अब तक 3 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य 5 करोड़ पेड़ लगाने का है। कुछ साल पहले उन्हें वृक्ष मित्र के अवॉर्ड से नवाजा गया, लेकिन इसके अलावा उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वैसे उन्हें इस बारे में किसी से कोई शिकवा भी नहीं है। वह तो बस इस बात से खुश हैं कि कम से कम अब लोग उनकी बात सुनने लगे हैं और उसे मानकर पेड़ काटने से बचते हैं।

उत्तराखंड में सीमांत जिले पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक दामोदर राठौर पेड़ लगा चुके हैं। फिर चाहे वह दूर-दराज के डीडीहाट व चंपावत हों या मैदानी इलाके हल्द्वानी और बरेली हों। पेड़ों से उनके लगाव की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इंटर तक पढ़े दामोदर राठौर ने 1950 में ग्रामसेवक के तौर पर काम करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के आदेश पर वह पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पेड़ लगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। लगाने के लिए जो पौधे आते हैं वे आधे सूखे होते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद सिर्फ कागजों पर ही उस ओर ध्यान दिया जाता है।

सरकार की तरफ से इस फंड में आए धन का पूरा दुरुपयोग हो रहा है। दामोदर कहते हैं, 'यह सब बातें मुझे बहुत परेशान करती थीं। मैंने फैसला किया कि अब अपने बूते पेड़ लगाकर दिखाऊंगा और साबित करूंगा कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ मुमकिन है।' उन्होंने ग्राम सेवक का काम छोड़ दिया। 1952 से पेड़ लगाने की यह तपस्या अब तक अनवरत जारी है।

वह कुल 3 करोड़ 15 लाख 10 हजार 705 पेड़ लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में ज्यादातर पेड़ सिलिंग, उतीश और बाज के लगाए हैं। सिलिंग जल स्त्रोत के लिए वरदान होता है और उन्हें नया जीवन देता है। अब वह मेडिसन प्लांट भी लगा रहे हैं। ज्यादातर पेड़ ग्राम पंचायत की जमीन पर और कुछ व्यक्तिगत जमीन पर भी लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ लगाने के लिए इजाजत लेना बड़ा पेचीदगी भरा काम हैं। मैंने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे जहां भी वृक्ष विहीन जमीन मिलेगी वहां पेड़ लगा लूंगा। पौधों के लिए उन्होंने एक नर्सरी बनाई है।

बागवानी की किसी डिग्री के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति से सीखा है। प्रकृति ही मेरी पाठशाला है। परिवार में उनकी बीबी और 17 साल की एक बेटी है। लेकिन दामोदर कहते हैं कि उनके 3 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। लगाए गए पेड़ों को वह अपने बच्चे ही मानते हैं और उसी तरह उनकी देखभाल भी करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनकी तबीयत खराब ही रहती है, लेकिन 5 करोड़ पेड़ लगाने का जुनून उनमें नया जोश भरता है। वह डीडीहाट के पास 6900 फुट की ऊंचाई पर जंगलों के बीच कुटिया बना कर रहते हैं। घर का खर्च जुटाने के लिए उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती हैं। वह प्रार्थना भी करते हैं तो यही मांगते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा होने से पहले भगवान उन्हें अपने पास न बुलाए।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3101063.cms

अशोक लीलैंड 10 अरब रुपये से पकड़ेगी रफ्तार

ट्रक बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी अशोक लीलैंड लिमिटेड 1,000 करोड़ रुपये का ऋण लेकर भारत में नए संयंत्र लगाने की योजना बना रही है।

कंपनी की योजना अगले दो साल में इस ऋण से वाणिज्यिक वाहन बनाने के लिए नए संयंत्र स्थापित करने की है। कंपनी के मुख्य वित्त अधिकारी के श्रीधरन ने बताया कि कंपनी यह ऋण 500-500 करोड़ रुपये की दो किस्तों में जुटाया जाएगा।

इस रकम का निवेश कर कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करेगी और निर्यात को चार गुना कर लेगी। कंपनी को उम्मीद है कि नए संयंत्र की स्थापना के बाद वह सालाना 1,84,000 इकाई वाहनों का निर्माण कर लेगी। अशोक लीलैंड ने हाल ही में निसान मोटर्स के साथ हल्के ट्रक बनाने के लिए करार किया है। इन ट्रकों का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए कंपनी को अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करना पड़ेगा।

भारत दुनिया भर में तेजी से उभरती हुई दूसरी अर्थव्यवस्था है और इसमें वाणिज्यिक वाहनों की मांग लगातार बढ़ रही है। भारत में ऋण लेना अशोक लीलैंड को महंगा पड़ेगा। एंजेल ब्रोकिंग लिमिटेड की विश्लेषक वैशाली जाजू के मुताबिक इस साल ब्याज दर पिछले सात सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर है। इस कारण कंपनी के मुनाफे में गिरावट आएगी।

बुरा दौर

भारतीय रिजर्र्व बैंक ने महंगाई दर के लगातार बढ़ने के बाद भी मार्च 2007 से ब्याज दर 7.75 फीसदी से ज्यादा नहीं की है। वाहनों की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण ग्राहक भी ट्रक खरीदने से बच रहे हैं। इस कारण पिछले वित्त वर्ष में अशोक लीलैंड के मुनाफे में 6.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान कंपनी का मुनाफा 34.8 फीसदी था।

श्रीधरन ने कहा, 'ब्याज दर का लगातार बढ़ना हमारे लिए बहुत बुरी बात है लेकिन इस वजह से हम अपने विस्तार की योजनाओं को शुरू करने में और देर नहीं कर सकते हैं।' कंपनी की योजना आने वाले तीन साल में लगभग 32 अरब रुपये निवेश करने की है। इस साल अशोक लीलैंड के शेयरों की कीमत में लगभग 4.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले 2-3 साल में यह सबसे बड़ी गिरावट है।

अशोक लीलैंड और जापानी कंपनी निसान मिलकर अपने संयुक्त उपक्रम में लगभग 2,300 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। इस संयुक्त उपक्रम के तहत मार्च 2011 तक हल्के ट्रकों का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। मार्च में ही अशोक लीलैंड ने घोषणा की थी कि कंपनी अपनी विस्तार योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए विदेश से करीब 800 करोड़ रुपये जुटाएगी।

बड़ा विस्तार

श्रीधरन ने बताया कि कंपनी उत्तराखंड में भी एक संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रही है। कंपनी की योजना 2010 तक इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता सालाना 50,000 करने की है। उन्होंने बताया कि कंपनी दक्षिण भारत में एन्नौर स्थित संयंत्र की उत्पादन क्षमता भी बढ़ाएगी।

श्रीधरन ने बताया कि कंपनी की योजना अगले चार साल में निर्यात से प्राप्त होने वाले राजस्व को चार गुना बढ़ाकर सालाना 40 अरब रुपये करने की है। कंपनी की योजना श्रीलंका, पश्चिम एशिया, फिलिपींस और बंगलादेश में बिक्री बढ़ाने की भी है।

अभी इन देशों में कंपनी हर साल 8,000 वाहन ही बेच पाती है। लेकिन कंपनी अगले चार साल में यह आंकड़ा 30,000 वाहन तक पहुंचाना चाहती है। इसके लिए अशोक लीलैंड जल्द ही एक या दो देशों में असेंबलिंग संयंत्र लगा सकता है।

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Friday, May 23, 2008

उत्तराखंड कहिए या 'दानवीर कर्ण'

गर्मी बढ़ने के साथ ही जहां अन्य राज्यों में बिजली की किल्लत होने लगती है, वहीं उत्तराखंड सरकार को गर्मियों में बिजली उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है।

उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में बर्फ के पिघलने से बिजली उत्पादन बढ़ सकता है। उसके मुताबिक, राज्य में बिजली उत्पादन का आंकड़ा 23.5 मिलियन यूनिट से 24.5 मिलियन यूनिट तक पहुंच सकता है। यानी मांग से करीब 2 मिलियन यूनिट ज्यादा बिजली उत्पादन की उम्मीद है।

औरों पर भी करम करेगी सरकार

यूपीसीएल के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य में मांग से अधिक बिजली उत्पादन होने की उम्मीद में राज्य सरकार दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की तर्ज पर नए समझौते करेगी। जल विद्युत पर निर्भर इस राज्य में बिजली उत्पादन की यह स्थिति सर्दियों के उन हालात से बिल्कुल उलट है, जब नदियों में पानी की कमी के चलते यहां बिजली की भारी किल्लत थी।

लेकिन अब बिजली उत्पादन बेहतर होने की जो उम्मीदें जगी हैं उसकी वजह सिर्फ यह नहीं है कि बर्फ बिघलने से नदियों में ज्यादा पानी है। दरअसल 304 मेगावॉट की बहुप्रतीक्षित मनेरी भाली जलविद्युत परियोजना (स्टेज 2) पूरा हो जाने से यह संभव हुआ है। भले ही यह परियोजना देर से पूरी हुई है लेकिन काम हो जाने से सरकार ने राहत की सांस ली है।

दिलचस्प पहलू यह है कि उत्तरकाशी जिले में भगीरथी नदी पर बनी मनेरी भली परियोजना राष्ट्र को समर्पित की गई तो मुख्य मंत्री भुवन चंद खंडूड़ी उसका सारा श्रेय अपने नाम करना नहीं भूले। खंडूड़ी ने कहा कि सरकार की जी-तोड़ कोशिश के चलते ही यह काम पूरा हो पाया है।

मनेरी ने की है कायापलट

मनेरी भाली परियोजना का काम पूरा हो जाने से न सिर्फ उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड(यूजीवीएनएल) ने राहत की सांस ली है बल्कि इससे राज्य का बिजली संकट खत्म होने के भी आसार हैं। गौरतलब है कि 9 नवंबर साल 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद पूरी होने वाली यह पहली जलविद्युत परियोजना है।

यह वजह है कि खंडूड़ी ने इसे उत्तराखंड का पहला पावर बेबी कहा। सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक उत्तराखंड में 25450 मेगावॉट पनबिजली उत्पादित की जा सकती है लेकिन फिलहाल केवल 2810 मेगावॉट बिजली का उत्पादन ही किया जा रहा है।

एनएचपीसी, एनटीपीसी, टीएचडीसी सरकारी कंपनियों के जिम्मे 13667 मेगावॉट की परियोजनाएं हैं और सरकार 8932 मेगावॉट क्षमता वाली नई परियोजनाओं के लिए जल्द ही नीति बनाने वाली है।

बस 10 साल में होगा कमाल

जानकारों का कहना है कि अगर यह सारी परियोजनाएं अगले 5 से 10 साल के अंदर पूरी हो जाती हैं तो उत्तराखंड बिजली के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर हो जाएगा बल्कि भारत का एक बिजली संपन्न राज्य बन जाएगा। बिजली सचिव शत्रुघ्न सिन्हा भी उम्मीदों से भरकर कहते हैं कि केवल 5 से 10 साल की बात है फिर सारी परियोजनाएं का काम पूरा हो जाएगा।

मगर राह में कुछ मुश्किलें भी हैं

हालांकि रास्ता उतना आसान भी नहीं है। 6000 मेगावॉट क्षमता वाली पंचेश्वर परियोजना का भविष्य पहले ही अधर में लटका है। जैसा कि मुख्यमंत्री खंडूड़ी ने कहा कि नेपाल के हालिया राजनैतिक बदलाव के मद्देनजर इस परियोजना से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मसलों पर ध्यान देना होगा।

पिथौरागढ़ मे रिलायंस एनर्जी की 340 मेगावॉट की अर्थिंग सोबला परियोजना पर भी मुश्किलों के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि यह एस्कॉट वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में पड़ रही है। इस मसले पर वाइल्डलाइफ अथॉरिटी और राज्य सरकार के बीच ठन गई है।

उधर खंडूड़ी केन्द्र से भी बिजली पाने की जुगत भिड़ाने में लगे हैं। साथ ही सरकार अपनी नई विद्युत नीति का कड़ाई से पालन कर रही है। सरकार ने फैसला किया है कि माइक्रो(100 किलोवॉट तक) और मिनी ( 100 किलोवॉट से कम) पनबिजली परियोजनाओं के लिए स्थानीय उद्यमियों और ग्राम पंचायतों को वरीयता दी जाएगी। इससे पहले सरकार ने प्रदेश से बाहर की निजी कंपनियों पर ज्यादा भरोसा जताया था।

प्रादेशिक आइना
उत्तराखंड - हाल-ए-बिजली

बर्फ पिघलने से गर्मियों में बिजली उत्पादन बढ़ने की उम्मीद
मांग से करीब 2 मिलियन यूनिट ज्यादा बिजली उत्पादन के अनुमान
राज्य में 25450 मेगावॉट पनबिजली उत्पादित की जा सकती है
खंडूड़ी केन्द्र से भी बिजली पाने की जुगत भिड़ाने में लगे

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उत्तराखंड जुटाएगा 50,000 करोड़ रुपये का निवेश

उद्योग संघ एसोचैम ने उत्तराखंड में कारोबार की संभावनाओं से अधिकतम फायदा उठाने के लिए राज्य सरकार से कई निवेश प्रस्तावों की सिफारिश की है और कहा है कि अगले चार वर्षो के दौरान राज्य में 50,000 करोड़ रुपये का निवेश जुटाने की क्षमता है।

एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत ने 'उत्तराखंड पर एक दृष्टि पत्र: निवेश के लिए आदर्श गंतव्य' नाम से तैयार रिपोर्ट जारी करने के मौके पर कहा कि जल और सौर ऊर्जा, पर्यटन, आईटी, प्रौद्योगिकी संस्थान, जैव प्रौद्योगिकी, हस्तशिल्प और फ्लोरीकल्चर जैसे क्षेत्रों में निवेश की काफी संभावनाएं हैं। इन निवेश संभावनाओं पर अमली जामा पहनाने के साथ ही 2 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा।

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धूत ने इस रिपोर्ट की एक प्रति राज्य के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को भी दी और उम्मीद जताई कि दृष्टि पत्र में वर्णित परियोजाएं मूर्त रूप ले सकेंगी। इस पत्र में एसोचैम ने 15 सिफारिशें की हैं। धूत ने कहा कि 'मुझे विश्वास है कि इस पत्र में वर्णित सिफारिशें राज्य सरकार के लिए उपयोगी साबित होंगी।'

Friday, April 18, 2008

पैसों के लालच में कर रहे जंगलों का दोहन: जगत

अगस्तमुनि (रुद्रप्रयाग)। पर्यावरणविद जगत सिंह चौधरी 'जंगली' ने कहा कि जंगलों का लगातार हो रहा दोहन भविष्य के लिए खतरा बनता जा रहा है, इस पर अंकुश लगाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा।

उत्तराखंड राज्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद के सौजन्य से राजकीय इंटर कालेज अगस्त्यमुनि में 'पर्यावरण संरक्षण हमारा योगदान व दायित्व' विषय पर आयोजित सेमिनार में पर्यावरणविद जगत सिंह चौधरी जंगली ने कहा कि जिन लोगों ने हमेशा जंगलों को बचाने के लिए आवाज उठाई, वह आज भी गरीब है, लेकिन पैसे के लालच में अमीर लोग इन जंगलों का दोहन कर रहे है, जो उनका करोड़ों का व्यवसाय भी बन गया है। श्री जंगली ने कहा जंगलों की इस दुर्दशा को रोकने के लिए फिर से सभी लोगों को एकजुट होने की आवश्यकता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाए जाएं, ताकि भविष्य के लिए पर्यावरण पर मंडरा रहा खतरा कम हो सके। मैती संस्था के संस्थापक कल्याण सिंह रावत ने कहा कि प्रकृति को बचाने के लिए समाज को जागरूक करना होगा, तभी समाज में प्रकृति के लिए क्रांति आएगी। पहाड़ों से शहर क्षेत्रों के लिए हो रहा पलायन काफी खतरनाक है और कहीं न कहीं इससे पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। प्रकृति संस्था के गजेंद्र रौतेला ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए हमें सामाजिक रूप से जागृत होना चाहिए।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_4367496.html

Monday, March 24, 2008

Tata Motors to shift Ace prodn to Uttarakhand

Tata Motors will shift the entire production of its mini truck Ace and the passenger carrier variant of the vehicle, Magic, to Uttarakhand by next year.

"Currently, Ace and Magic are being produced from both Pune and Uttarakhand but the idea is to shift the total production to the latter unit," Ravi Pisharody, vice president (sales and marketing - commercial vehicles), Tata Motors, said today.

He said the shift would commence by the middle of next year. "We are expecting to utilise the full capacity of the Uttarakhand plant by the end of next year," Pisharody added.

The Uttarakhand plant has a production capacity of 2.25 lakh units per annum, and the company made an investment of Rs 1,000 crore in setting up the facility.

The company today launched its six-seater rural transportation vehicle Magic priced at Rs 2.68 lakh (ex-showroom Delhi), and 9-13 seater maxicab Winger (Rs 4.67 lakh to Rs 6.67 lakh, ex-showroom Delhi) in north India.

http://www.business-standard.com/common/storypage_c_online.php?leftnm=10&bKeyFlag=IN&autono=34654

दो दिन से अंधेरे में तल्लानागपुर व दशज्यूला क्षेत्र के कई गांव

रुद्रप्रयाग। जिले के अंतर्गत तल्लानागपुर व दशज्यूला क्षेत्र के कई गांवों में विगत दो दिन से विद्युत आपूर्ति ठप पड़ी हुई। इससे लोग अंधेरे में रहने को मजबूर है। वहीं बोर्ड परीक्षार्थियों का भी पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है।

तल्लानागपुर क्षेत्र के अंतर्गत काडा, क्यूड़ी, स्वांरी व ग्वांस तथा दशज्यूला क्षेत्रांतर्गत आगर कोखंडी व तलगढ़ सहित कई गांवों में दो दिन से बिजली आपूर्ति ठप पड़ी हुई है। इससे ग्रामीणों को रात भर अंधेरे में रहना पड़ रहा है। बिजली आपूर्ति न होने से स्थानीय व्यापारियों व विभागीय कर्मचारियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विभागों के आवश्यक कार्य भी इससे प्रभावित हो रहे है, जबकि हाईस्कूल व इंटर के बोर्ड परीक्षार्थी भी परेशान है। क्षेत्रीय निवासी सुदर्शन राणा, रघुवीर सिंह राणा, जगदीश सिंह, लक्ष्मण सिंह नेगी सहित कई लोगों का कहना है कि दो दिनों से क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति ठप पड़ी हुई। विभागीय अधिकारियों को जानकारी दी जा चुकी है, पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पायी है। उन्होंने कहा कि बिजली गुल होने से रात्रि के समय अंधेरे में रहना पड़ रहा है, इससे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा बोर्ड परीक्षार्थियों को इससे अध्ययन करने में परेशानी हो रही है। विद्युत विभाग के अधिशासी अभियंता एनएल बधाणी ने बताया कि क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति को सुचारु करने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। इसके लिए क्षेत्र में कर्मचारियों को भेजा गया है।

भारतीय संस्कृति व जीवन दर्शन के प्राण है वेद व पुराण : पंत

लोहाघाट(चम्पावत)। राज्य के पर्यटन मंत्री प्रकाश पन्त ने सोमवार को मां अखिल तारिणी धाम में चल रहे 108 दिनी महायज्ञ में पहुंच कर मां के दरबार में शीश नवाया तथा पूजा अर्चना की। इस दौरान क्षेत्रीय लोगों के अलावा पीठाधीश्वर दिगम्बर मोहन तीर्थ जी महाराज ने उनका स्वागत किया। महर्षि महेश योगी महाविद्यालय इलाहाबाद से आये आचार्यो ने स्वस्ति वाचन किया। खालगड़ा में भी मंत्री का पारम्परिक वाद्य यंत्रों व छोलिया नृत्य के बीच भव्य स्वागत किया गया।

हिन्दु धर्म ग्रन्थों को जीवन का सार बताते हुए पर्यटन मंत्री ने कहा कि भारतीय मनीषियों ने पुराणों व वेदों की रचना जनकल्याण के लिए की है। पिछले जन्म के प्रारब्ध के आधार पर ही मनुष्य योनि मिलती है। उन्होंने यज्ञ, होम व पुराण कथा वाचन को धर्म के प्रचार प्रसार व सद्बुद्धि के लिए आवश्यक बताते हुए कहा कि पीठाधीश्वर महाराज द्वारा यहां जो विशाल अनुष्ठान किया जा रहा है उससे यह क्षेत्र समृद्धि, प्रगति व सुख शांति का वाहक बनेगा। उन्होंने श्रद्धालुओं को आश्वस्त किया कि यह दिव्य स्थल भी जिले के पर्यटन ग्रिड में शामिल किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिस संकल्प के माध्यम से यह अनुष्ठान किया जा रहा है उसमें उनकी सरकार और वह स्वयं पूरा सहयोग करेगे।

संस्कृति को संजोने को जागरी बनें प्राध्यापक

कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। जनता दल यूनाइटेड के सुझाव पर अमल हुआ तो गांवों में जागर लगाने वाले जागरी, महाविद्यालयों में प्राध्यापक व चिकित्सालयों में मनोरोग विशेषज्ञ के पद संभालेंगे।

जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष आरके त्यागी की ओर से सूबे के मुख्यमंत्री को प्रेषित पत्र में कहा है कि उत्तराखंड की संस्कृति को लुप्त होने से बचाने के लिए पारंपरिक विधा ढोल सागर को माध्यमिक व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल करने के साथ जागरियों को बतौर शिक्षक नियुक्ति दी जाए। कहा गया कि प्रदेश की जनता पारंपरिक रूप से कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त है। अधिकांश लोग ऐसे रोगों से ग्रस्त हैं, जो केवल ध्वनि तरंगों, वाद्य यंत्रों व जागर लगाकर ही ठीक हो सकते हैं। इनका इलाज दुनिया के किसी भी आधुनिकतम मेडिकल कालेज में नहीं है। इसके लिए अनुभवी, प्रशिक्षित, मद्य निग्रही, सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकृत जागरियों को प्रत्येक चिकित्सालय व मेडिकल कालेज में मनोरोग विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया जाए। पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि राज्य में धार्मिक कार्य संपादित करने वाले विद्वान, पंडित-पुरोहितों को प्रत्येक गांव के प्राथमिक विद्यालयों में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने का दायित्व सौंपा जाए। इसके अलावा उत्तराखंड में अनूसूचित जाति के लोगों को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का कोटा तय करते हुए आरक्षित कोटे में से सत्तर फीसदी पहाड़ी व तीस फीसदी मैदानी क्षेत्र में रहने वालों को सरकार व गैर सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था की जाए।

हाथी ने वृद्ध को पटक कर मार डाला

कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत ग्रामसभा मथाणा के उप गांव काटल में हाथी ने एक वृद्ध को पटक-पटक कर मार डाला।

यह घटना सोमवार तड़के करीब चार बजे की है। काटल निवासी करीम बख्श(60 वर्ष) खेतों में खड़ी फसल की देखभाल के लिए खेत में ही चारपाई बिछाकर सो रहा था। सुबह करीब चार बजे हाथियों का झुंड वहां पहुंचा और एक हाथी ने करीम बख्श को पटक-पटक कर मार डाला। पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने स्थानीय प्रशासन व वन प्रभाग के अधिकारियों को घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही वन प्रभाग व राजस्व विभाग के अधिकारी मौके की ओर रवाना हो गए। समाचार लिखे जाने तक गांव काटल गए अधिकारी वापस नहीं लौटे थे।

नैनीताल में पर्यटकों की भीड़ बरकरार

नैनीताल। पर्यटन नगरी नैनीताल में पर्यटकों की भारी भीड़ बनी हुई है। जिसके चलते सोमवार को नगर के पर्यटन स्थलों व बाजारों में सैलानियों से रौनक रही।

उम्मीद की जा रही थी कि पिछले तीन दिनों से नगर में जमा सैलानियों की भीड़ सोमवार को छट जाएगी, लेकिन उम्मीद के परे भारी संख्या में सैलानियों की भीड़ नगर में बनी हुई है। जिसके चलते नगर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में पूरे दिन सैलानियों की आवाजाही बनी रही। बाजारों में खरीददारी करने वाले सैलानियों की भीड़ भी काफी संख्या में नजर आई। बड़ा बाजार, माल रोड व भोटिया बाजार में सैलानियों ने जमकर खरीददारी की। उप पर्यटन निदेशक जीसी बेरी के मुताबिक इस बार होली में रिकार्ड तोड़ सैलानी पूरे कुमाऊं के पर्यटन स्थलों में पहुंचे है। कार्बेट पार्क, कौसानी, रानीखेत, मुक्तेश्वर, भीमताल, सातताल व नौकुचियाताल में पिछले तीन दिनों से सैलानियों का आगमन जारी है। उन्होंने कहा कि कुमाऊँ के पर्यटन के लिए इस अवसर पर सैलानियों का उमड़ना शुभ संकेत है। इससे यहां के पर्यटन को बल मिलेगा।

रूपकुंड नाटक की आकर्षक प्रस्तुति से मुग्ध हुए मेलार्थी

कर्णप्रयाग (चमोली)। सिद्धपीठ नौटी में चल रहे नंदा देवी मेले में 'रूपकुंड नाटक' की आकर्षक प्रस्तुति ने दर्शकों को मुग्ध किया।

हिन्द मॉडल पब्लिक स्कूल कनोठ के छात्र-छात्राओं ने राजा जसधवल के राज परिवार प्रजा व सेना के रूपकुंड में हिमसमाधि लेने की दर्दनाक नाटिका को प्रस्तुत कर दर्शकों की वाहवाही लूटी। तीन दिवसीय नंदादेवी मेले में दूर-दराज गांवों से काफी संख्या में महिलाएं व पुरुष हिस्सा ले रहे हैं। मेले में दौड़, लोकगीत व लोकनृत्य की जूनियर, सीनियर स्पर्धाओं के अंतर्गत जल, वन संरक्षण एवं महिला उत्थान पर गोष्ठियों का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के उद्घाटन अवसर पर प्रधानाचार्य डीएन नौटियाल ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से क्षेत्र में जनजागृति भी पैदा होती है। मेला संस्थापक व समारोह अध्यक्ष भुवन नौटियाल ने वर्ष 1980 में प्रारंभ किये गए पर्यटन मेले में आर्थिक सहायता बढ़ाये जाने की मांग की।

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान

कर्णप्रयाग (चमोली)। उत्तराखंड स्वास्थ्य महानिदेशालय के सहयोग से बस स्टेशन पर स्वैच्छिक संस्था नंदादेवी कला जत्था के कलाकारों ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ नुक्कड़ नाटक के जरिए लैंगिक समानता का संदेश दिया।

नागरिकों ने कला जत्था के इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ अभियान को मजबूती मिलेगी। कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक 'यमलोक' के जरिये कन्या भ्रूण हत्या को समाज से मिटाने और जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण व गर्भ में ही भ्रूण हत्या करने पर तीन से पांच साल की सजा व दस हजार रूपये तक का जुर्माना होने की कानूनी जानकारी भी लोगों को दी। सांस्कृतिक दल के प्रमुख ने बताया कि जनपद के अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के कार्यक्रम किए जा रहे हैं।

मृतक आश्रितों को नियुक्ति नहीं मिलने से रोटी का संकट

सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। बेसिक शिक्षा परिषद के राजकीयकरण के बाद परिषद के मृतक आश्रितों को विद्यालयों व संस्थानों में सेवायोजित नहीं किया जा रहा है। जिसे लेकर प्रभावित परिवारों के सामने दो जून रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।

इस मामले में सौ से अधिक मृतक आश्रितों को सेवायोजित किया जाना था, जो नहीं हो सका। राजकीयकरण के बाद जारी शासनादेश में कहा गया है कि यदि किसी कार्मिक की मृत्यु होती है तो उनके आश्रितों को ही लाभ अनुमन्य होंगे। शासनादेश में कहा गया है कि राजकीयकरण की तिथि से पूर्व के मामलों में नियमावली लागू नहीं होगी। परिषदीय शिक्षकों को 22 अप्रैल 2006 से राजकीय माना गया है। परिषदीय कार्मिकों को भी 5 वर्ष के अंतराल में मृतक आश्रित कोटे से नियुक्ति दी जाती रही है। किंतु राजकीयकरण होने के बाद पूर्व के मृतक आश्रितों को नियुक्ति के लिए कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ है।

प्रदेश भर के हर जिले से ऐसे मृतक आश्रितों ने जुलाई माह में प्रदेश के शिक्षा मंत्री मदन कौशिक सहित विद्यालयी शिक्षा निदेशक को अपना दर्द सुनाया। जिस पर इन आश्रितों को सेवायोजित किए जाने का आश्वासन तो मिला, लेकिन नियुक्तियां नहीं मिली। प्रदेश भर में लगभग सौ से अधिक मृतक आश्रित इस शासनादेश का दंश झेलने को मजबूर है।

जंगलों में लगी भीषण आग, लाखों का नुकसान

रानीखेत(अल्मोड़ा)। जंगलों में आग लगने का दौर जारी है। आग से ताड़ीखेत, द्वाराहाट, स्याल्दे ब्लाक में बहुमूल्य वन संपदा व जानवरों का चारा आग की भेंट चढ़ गया है। वहीं खेतों में आग लगने से गेहूं की फसल भी प्रभावित हुई है। आग से लगभग पांच लाख से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।

स्याल्दे ब्लाक के मुख्यालय के सामने कहड़गांव में जंगलों में भीषण आग का दौर जारी है। यहां कहड़गांव के सिमलधार से देवी मन्दिर तक का लगभग डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र आग की चपेट में है। सिमलधार, धार, पपनोई गांव पूरी तरह आग से घिरे हुए है। आग इतनी भीषण थी कि वह ग्रामीणों के गौशाला तक पहुंच गई। ग्रामीणों के मिलजुलकर प्रयास से बमुश्किल गौशालाओं को बचाया गया। हटल गांव के नेवलगांव तोक में भी जंगलों में आग लगने के समाचार है। वहीं तिमिली के रुचिखाल तोक से हटहटखाल तोक तक आग से लगभग 70 प्रतिशत वन पंचायत के जंगल प्रभावित हुए है। वहीं 30 प्रतिशत नाप भूमि में लगाए गए नर्सरी के लगभग 2 हजार पौधे भी आग की भेंट चढ़ गए है।

द्वाराहाट ब्लाक के ग्वाड़ गांव के खनूली तोक में आग लगने के समाचार है। यहां ग्रामीणों के लगभग 5 सौ नाली भूमि पर गेहूं की फसल व 50 घास के लूटे भी आग की भेंट चढ़ गए है। आग से प्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने बताया कि आग को बुझाने के लिए शासन-प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि मौके पर नहीं पहुंचा है। ग्रामीण प्रशासन के इस उपेक्षापूर्ण रवैए से आक्रोशित है। उन्होंने कहा कि सूचना देने के बाद भी आग को बुझाने के लिए शासन-प्रशासन का कोई कर्मचारी मौके पर नहीं पहुंचा।

ज्ञात हो कि बीते दिनों माजिल गाड़ जंगल में लगी भीषण आग की चपेट में तिमिली, चचरेटी गांव आए। आग से ग्रामीणों के तीन दर्जन घास के लूठे व घरों के आसपास रखी जलाऊ लकड़ियां जलकर राख हो गई थी। आग से लगभग 2 लाख रूपए का नुकसान हुआ। सोमवार को जंगलों में आग लगने का सिलसिला जारी है।

Sunday, March 23, 2008

जंगलों से गायब है बुरांश के फूलों की रंगत

चौखुटिया(अल्मोड़ा)। उत्तराखंड के जंगलों में बहुरंगी रंगत बिखेर देने वाले बुरांश व काफल के फूलों की अपनी एक अलग पहिचान है। बुरांश के फूल मार्च आखिरी से अप्रैल माह में खिलते है, लेकिन बारिश न होने से अबकी बार फीकापन नजर आ रहा है तथा बुराश के फूल गायब है। छुटपुट पेड़ों पर खिले भी है तो मुर्झाये हालत में। प्रकृति के बदलते स्वरूप से लोगों में निराशा है।

उत्तराखंड के विभिन्न जंगलों में बुरांश के वृक्ष करीब 5 हजार से 12 हजार फीट की ऊंचाई वाले भागों में पाये जाते है। इन दिनों इसके फूल प्रकृति की भव्यता व सुन्दरता में चार चांद लगा देते है तथा लोगों के मन को बरबस अपनी ओर लुभाते है। बुरांश के फूल चटक लाल रंग के होते है। कहीं-कहीं ऊंचे स्थानों पर सफेद फूल भी दिखाई देते है। बुरांश के फूल जहां मनोहारी दृश्य के दर्शन कराते है वहीं हमारे दैनिक जीवन में इनका विशेष महत्व भी है।

उत्तराखंड के तमाम जंगलों में पाये जाने वाले बुरांश के वृक्ष फरवरी के आखिर से पुष्पित होने लगते है तथा मार्च आखिर से अप्रैल माह में ये फूल जंगलों में बहुतायत खिले दिखाई देते है। गर्मी के प्रकोप के साथ ही ये फूल सूख कर जमीन में गिर जाते है। बुरांश के फूलों से गुणकारी जूस बनाया जाता है जो ह्दय रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है। साथ ही इसके अन्य कई उपयोग है। साथ ही पर्यटकों को भी बुरांश का फूल स्वत: ही अपने ओर खींचने की क्षमता रखता है।

वहीं इस बार जंगलों में बुरांश के फूलों की रंगत गायब है। कहीं-कहीं फूल खिले भी है तो बिल्कुल मुर्झाये है। कारण इस शीतकाल में बारिश का न होना व तेजाबी पाला गिरना है। इससे जंगलों में भी सूखे की हालत बनी है तथा बुरांश सहित अन्य वृक्षों की पत्तियां व कोपलें सूख गये है। जिससे जंगलों में फीकापन नजर आ रहा है। फूल व्यवसायी भी निराश है। क्योंकि लोग बुरांश के फूलों को जूस बनाने के लिये उपयोग करते है।

उफल्डा में पर्यावरण मित्र योजना शुरू

श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। उफल्डा में स्वच्छता अभियान को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए पर्यावरण मित्र योजना की शुरुआत की गई। क्षेत्र में जैविक और अजैविक कूड़े को रिक्शा पर इकट्ठा किया जा रहा है।

एक समारोह में आदर्श ग्राम पंचायत उफल्डा के प्रधान रमेश रावत ने योजना का शुभारंभ किया। क्षेत्र में पर्यावरण मित्र योजना को शुरू कराने में सहयोग के लिए एनएचपीसी, एसडीएम कीर्तिनगर व जन चेतना समिति का ग्राम पंचायत उफल्डा ने आभार व्यक्त किया। उफल्डा को आदर्श ग्राम पंचायत का दर्जा देने के लिए ग्राम प्रधान ने मुख्य विकास अधिकारी पौड़ी का भी आभार व्यक्त किया और क्षेत्र के व्यापारियों व ग्रामीणों से पर्यावरण मित्र योजना को सफल बनाने को कहा।

थानाध्यक्ष के खिलाफ महिला भूख हड़ताल पर बैठी

बड़कोट (उत्तरकाशी)। मोल्डा गांव की महिला ने पुलिस पर हिरासत में लेकर मारपीट का आरोप लगाया है। इसके विरोध में महिला ने एसडीएम कार्यालय के समक्ष भूख हड़ताल शुरू कर दी है।

नौगांव ब्लाक के मोल्डागांव में बीती 17 फरवरी को विजयलक्ष्मी व प्रकाशी के बीच किसी बात को लेकर मारपीट हुई। प्रकाशी देवी ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाई। पुलिस मोल्डागांव से विजयलक्ष्मी पत्‍‌नी अतोल सिंह को थाने ले आई। इस मामले में विजय लक्ष्मी का आरोप है कि बड़कोट थानाध्यक्ष मान सिंह रावत ने उन्हें थाने बुलाकर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया और बिना महिला सिपाही की उपस्थिति में उन्हें थाने में बंद रखा। विजयलक्ष्मी का कहना है कि उसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर यह मामला भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष भी रखा, लेकिन सत्ताधारियों ने भी मामले से मुंह मोड़ लिया। पुलिस व प्रशासन के कार्यालयों के चक्कर काट थक चुकी महिला ने उपजिलाधिकारी को पत्र लिखकर आज से भूख हड़ताल पर बैठने की चेतावनी दी थी। विजयलक्ष्मी ने उत्पीड़न के खिलाफ आज से उपजिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष भूख हड़ताल शुरू कर दी है। इस मामले में थानाध्यक्ष मान सिंह रावत का कहना कि गांव की दो महिलाओं के बीच मारपीट में विजयलक्ष्मी के शरीर पर घावों के निशान पड़े हैं। उन्होंने महिला का उत्पीड़न नहीं किया गया है।

धू-धू जल रहे जंगल, विभाग लापरवाह

घनसाली/पोखरी (टिहरीगढ़वाल)। गढ़वाल में जंगल धू-धू कर जल रहे है। आग से अब तक करोड़ों की वन संपदा जलकर राख हो गई। ग्रामीणों की आधा दर्जन से अधिक छानियां भी वनाग्नि की भेंट चढ़ गई, लेकिन वन विभाग आग को बुझाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है।

घनसाली: भिलंगना प्रखंड के पट्टी भिलंग के ग्राम पोखार के ग्रामीणों की आधा दर्जन से अधिक छानियां वनाग्नि की चपेट में आ गई। ग्रामीण गब्बर सिंह रावत, सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि कई दिनों से लगी आग से ग्रामीणों की सात छानियां वनाग्नि की चपेट में आने से जल कर राख हो गई व छानियों में रखा सामान भी स्वाह हो गया। वहीं कोटी फैगुल, नैलचामी, भिलंग व ग्यारह गांव हिंदाव, केमर पट्टी के चारों ओर के जंगल जलकर खाक हो रहे है। आग बुझाने के लिए कोई भी प्रयास नही किए जा रहे हैं। जबकि बीते दो सप्ताह पहले बालगंगा रेंज के जंगलों में लगी आग से गनगर गांव भी वनाग्नि की भेंट चढ़ गया था, लेकिन इसके बावजूद वन विभाग आग से बुझाने के बजाय होली के खुमार में मस्त रहा। यहां तक की वन विभाग ने घनसाली स्थित रेंज मुख्यालय के समीप लगी आग को बुझाने का प्रयास तक नही किया। युवा नेता विजयपाल कैंतुरा ने बताया कि प्रखंड के जंगलों में कई दिनों से आग लगी हुई है, लेकिन विभाग इस ओर कोई ध्यान नही दे रहा है। पोखरी: नागनाथ रेंज में लगी आग से वन संपदा को भारी क्षति पहुंच रही है। होली के पर्व पर, तीन दिन के अवकाश के कारण वन विभाग के कर्मचारी कहीं भी आग बुझाते हुए नहीं दिखे। नागनाथ रेंज के त्रिसूला बीट के रैंसू जंगल में तीन दिन से लगी आग कई हैक्टेयर जंगल को लील गई है। समाचार लिखे जाने तक किसी भी स्तर से आग पर काबू नही पाया जा सका था। दूसरी ओर, मोहनखाल के समीप पैरखाल क्षेत्र में भी आज सुबह दस बजे जंगल में आग लग गई है।