उत्तराखंड सरकार उत्तरकाशी और गंगोत्री नदी के बीच पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण कार्य को बंद करने पर विचार कर रही है। |
मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने कहा है कि यदि केन्द्र सरकार उत्तराखंड की बिजली संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए तैयार हो जाती है तो उनकी सरकार पाला मनेरी और भैरो घाटी परियोजना को स्थगित करने के लिए तैयार है। खंडूड़ी इस संबंध में अंतिम निर्णय लेने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर रहे हैं। इस बीच भगीरथी पर पनबिजली परियोजनाओं के विरोध में राज्य के दिग्गज पर्यावरणविद् डॉ जी डी अग्रवाल का आमरण अनशन पांचवे दिन भी जारी रहा। माना जा रहा है कि चौतरफा दबाव बढ़ने के बाद सरकार ने भागीरथी पर पनबिजली परियोजनाओं के विकास से तौबा करने का पूरा मन बना लिया है। राज्य के मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी ने इस बात का संकेत दिया है कि अगर राज्य की बिजली आपूर्ति का जिम्मा केंद्र सरकार ले तो इस पवित्र नदी पर पनबिजली परियोजनाओं को रोकने में उन्हें कोई परेशानी नही है। लेकिन खंडूड़ी ने एक बात स्पष्ट तौर पर कही है कि चूंकि लोहारी नागपाला पर चल रही 600 मेगावाट की पनबिजली परियोजना एनटीपीसी के जिम्मे है, इसलिए उसे बंद करने का निर्णय भी केंद्र सरकार को ही लेना है। विरोध को समर्थन खंडूड़ी का बयान ऐसे समय में आया है जब भागीरथी पर पनबिजली प्रोजेक्ट पर विरोध कर रहे अग्रवाल को विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार ने समर्थन देने की बात की थी। भागीरथी पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं के मामले पर गरमाती राजनीति के बाद मुख्यमंत्री ने इस तरह का बयान देकर नरम रवैया अपनाने का संकेत दिया है। अग्रवाल ने शुक्रवार से भागीरथी नदी के प्रमुख घाट मणिकर्णिका घाट पर इस प्रोजेक्ट को बंद करने की मांग करते हुए आमरण अनशन जारी किया था। इस समय उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। विश्व हिंदू परिषद ने इस बावत अपने केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में यह निर्णय लिया है कि वे अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में भागीरथी को बचाने के लिए अभियान चलाएंगे। उनका मानना है कि गंगा की शुद्धता का मामला पूरे देश के लिए एक अहम मसला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित संगठन हिंदू जागरण मंच ने भी इस मसले पर अग्रवाल के अनशन का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इसके पहले द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद ने भी भागीरथी को बांधों से घेरने का विरोध किया था। इस विरोध का समर्थन करने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सुंदर लाल बहुगुणा, एम सी मेहता, राजेन्द्र सिंह भी अग्रवाल के साथ खुले तौर पर आ गए है। भागीरथी नदी पर बनने वाले बांधों में पाला मनेरी (480 मेगावाट), लोहारी नागपाला (600 मेगावाट), भैरों घाटी (381 मेगावाट), और जड़ गंगा (200 मेगावाट) आदि प्रमुख हैं। ऊर्जा राज्य बनने का सपना उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में पर्यावरणविद् 'भागीरथी बचाओ' अभियान चला रहे हैं और इस नदी पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सरकार का विरोध कर रहे हैं। उत्तराखंड देश के सबसे तेजी से उभर रहे राज्यों में से एक है। यह राज्य 'ऊर्जा राज्य' के रूप में काफी तेजी से विकसित हो रहा है। राज्य सरकार आने वाले तीन से दस साल में पनबिजली परियोजना के जरिए 25,000 से 30,000 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की योजना बना रही है। उल्लेखनीय है कि इस पहाड़ी राज्य में बिजली कारोबार के लिए रिलायंस एनर्जी, जीवीके, जीएमआर, एनएचपीसी, टीएचडीसी और एनटीपीसी जैसी बड़ी कंपनियां होड़ में हैं। लेकिन राज्य में बांधों को लेकर लोगों में विरोध बढ़ रहा है। राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ जिले से लेकर गढ़वाल में चमोली तक, जितनी भी नई परियोजनाएं बनी हैं, उससे हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा। यही नहीं, कई शहरों और गांवों के लिए ये बांध मौत की घंटी भी साबित हुए हैं। पर्यावरणविदों ने आरोप लगाया कि भागीरथी नदी पर बनने वाली परियोजनाएं नदी को खा जाएंगी। इन परियोजनाओं के तहत जो सुरंगें बनने वाली हैं, उनसे यहां की स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। उत्तराखंड की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं और वे यहां बनने वाले बांधों को लेकर काफी सहमे हुए हैं। अगर यहां निर्माण कार्य शुरू हो जाता है तो वे बेघर हो जाएंगे। भागीरथी नदी पर बनने वाली परियोजनाओं और उससे हजारों लोगों के बेघर होने की आशंका के मद्देनजर पर्यावरणविद् बीते तीन महीनों से राज्य के विभिन्न शहरों में रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अंधेरा फैलाता तरल सोना पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े लोग बांध में जमा पानी को तरल सोने की संज्ञा देते हैं लेकिन इस सोने को जमा करने के लिए टिहरी में करीब एक लाख लोगों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी थी। अब उत्तराखंड सरकार ने भी कह दिया है कि वह टिहरी जैसी परियोजनाओं के पक्ष में नहीं है। राज्य के पिथौरागढ़ जिले में 280 मेगावाट की धौलीगंगा परियोजना की राह में आने वाले अलीगढ़ गांव और उसके 24 परिवारों को उखड़ना पड़ा था। अलीगढ़ से 50 किमी की दूरी पर केंद्र सरकार अब 6,000 मेगावाट की पंचेश्वर पनबिजली परियोजना के निर्माण कार्य की योजना बना रही है। यह परियोजना भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी पर बनाया जाएगा। यह परियोजना टिहरी बांध के आकार की तीन गुनी होगी। यह आशंका जताई जा रही है कि इस परियोजना के निर्माण से करीब 80,000 लोग बेघर हो जाएंगे। यही नहीं, चमोली जिले के लोग भी विशाल सुरंग के निर्माण को लेकर काफी आक्रोशित हैं। इसके अलावा जोशीमठ के नजदीक अलकनंदा नदी पर भी एक मेगा प्रोजेक्ट की वजह से जोशीमठ नगर के लिए समस्या उत्पन्न हो गई है। भागीरथी पर बनने वाले बांध परियोजना का नाम क्षमता पाला मनेरी 480 मेगावाट लोहारी नागपाला 600 मेगावाट भैरो घाटी 381 मेगावाट जड़ गंगा 200 मेगावाट http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4693 |
Wednesday, June 18, 2008
पनबिजली से तौबा की तैयारी
Friday, June 13, 2008
रेकॉर्ड तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं उत्तराखंड
उत्तराखंड की प्रसिद्ध चार धाम तीर्थ यात्रा इस समय चरम पर है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर देश ही नहीं विदेशों से भी तीर्थ यात्री भारी संख्या में आ रहे हैं। इस यात्रा के लिए राज्य सरकार द्वारा बड़े स्तर पर प्रबंध किए गए हैं। इस बार सरकार ने दो नई व्यवस्थाएं की हैं। इनमें से एक व्यवस्था इमरजेंसी रिस्पांस सेवा की है। इसके अंतर्गत कोई दुर्घटना होने अथवा स्वास्थ्य की गंभीर समस्या या अग्निकांड की स्थिति में टेलिफोन पर 108 नंबर डायल करने पर आधे घंटे के अंदर एंबुलेंस घटना स्थल पर पहुंच जाएगी। इसके अलावा पर्यटन पुलिस को पहली बार यात्रा मार्ग पर तैनात किया गया है।
रोचक बात यह है कि हेमकुंड जाने वाले यात्रियों में कई लोग मोटर साइकिलों पर आ रहे हैं। इसके अलावा बहुत से यात्री ट्रकों पर आ रहे हैं। इस बीच केदारनाथ में कुछ यात्रियों को अलग से दर्शन कराने को लेकर पंडों व पीएसी जवानों के बीच विवाद अब सुलझा लिया गया है। अब वी.आई.पी. यात्रियों का चिह्नीकरण करने की प्रक्रिया तय की गई है। वहीं पुलिस चौकी प्रभारी को बदल दिया गया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3104532.cms
बड़े पनबिजली संयंत्रों से उत्तराखंड को है परहेज
दिनो-दिन बुलंद होते 'भागीरथी बचाओ' के नारे के साथ ही देश के जाने-माने पर्यावरणविद् जी डी अग्रवाल और उनके तमाम साथी पिछले दिनों अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर चले गए। |
इसके एक दिन बाद उत्तराखंड सरकार ने कहा कि वह राज्य में बनने वाली बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के पक्ष में नहीं है। राज्य के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार सिर्फ उन परियोजनाओं को मंजूरी देगी जो प्राकृतिक रूप से बहती नदियों पर बनाई जानी है और टिहरी जैसी बांध परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी जाएगी। गांधीवादी विचारों का अनुसरण करने वाले 76 वर्षीय अग्रवाल चित्रकूट के रहने वाले हैं। देश की पवित्र नदियों में से एक भागीरथी पर एक के बाद एक बन रहे पनबिजली संयंत्रों के खिलाफ अग्रवाल और उनके साथी ने पिछले दिनों राज्य के उत्तरकाशी में अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। अग्रवाल के साथ इस भूख हड़ताल में राजेंद्र सिंह, गोविंदाचार्य, सुनीता नारायण, वंदना शिवा और एम सी मेहता जैसे देश के जाने-माने पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। जिस दिन से अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल शुरू की, उसे अग्रवाल ने 'गंगा दशहरा' का नाम दिया है। अग्रवाल ने कहा कि अगर ऐसे ही पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी मिलती रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश की सबसे पवित्र नदी भागीरथी का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि राज्य में जो पनबिजली परियोजानाओं का निर्माण किया जाना है उनमें- पाला मनेरी, मनेरी भाली फेस-11, लोहरी नागपाल, कोटेश्वर, भैरव घाटी और जद गंगा आदि शामिल हैं। इन परियोजनाओं से पर्यावरण के लिए भी समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी। http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4528 |
कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू
इस वर्ष की कैलाश मानसरोवर यात्रा का यह पहला जत्था है। यात्रियों की रवानगी में 13 दिन का विलंब हुआ तथा पहले तय किए दो जत्थों की यात्रा नहीं हो पाई। चीन सरकार ने घरेलू कारणों का हवाला देते हुए यात्रा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया था। यात्रियों की रवानगी के अवसर पर उत्तराखंड के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रकाश पंत और सचिव राकेश शर्मा उपस्थित थे। ओम के मंत्रोच्चार और शंख ध्वनि के बीच यात्री रवाना हुए। राज्य सरकार की ओर से यात्रियों को पूजन सामग्री और रुद्राक्ष माला प्रदान की गई। इस यात्रा का संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम कर रहा है। यात्रियों का चयन और यात्रा कार्यक्रम विदेश मंत्रालय ने तय किया है।
उत्तराखंड सूचना केंद्र की एक विज्ञप्ति के अनुसार दिल्ली से कै लाश मानसरोवर और फिर वापसी की कुल यात्रा अवधि 26 दिन है। इस यात्रा के लिए कुमाऊं में धारचुला आधार शिविर हैं तथा आगे गाला, बूंदी, गुंजी, कालापानी और नामीढांग में कुल पांच शिविर बनाए गए हैं।
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4539360/
पड़ोसियों से बिजली की साझेदारी
कुछ दिन पहले तक दूसरे राज्यों को बिजली बेचने की योजना बना रही उत्तराखंड सरकार पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर बिजली का साझा करने की इच्छुक जान पड़ती है। |
राज्य सरकार द्वारा संचालित उत्तराखंड जल विद्युत निगम बिजली सचिव को प्रस्ताव भेज चुकी है। पॉवर ट्रेडिंग कार्पोरेशन (पीटीसी) और विनर्जी इंटरनैशनल ने राज्य से बिजली खरीदने की मंशा जाहिर की है। बिजली विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य से बिजली बेचने के संबंध में कोई भी फैसला मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी द्वारा ही लिया जाएगा। मुख्यमंत्री के पास ही बिजली मंत्रालय का प्रभार है।' अधिकारी ने बताया, 'फिलहाल हम लोग पड़ोसी राज्यों के साथ बिजली साझा में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। बिजली बेचने आदि के बारे में हम लोग आगे सोचेंगे।' पीटीसी राज्य सरकार से 7 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदने के लिए तैयार है। उसी वक्त विनर्जी ने भी निगम से बिजली खरीदने के लिए प्रस्ताव दिया था। विनर्जी ने 1 जून से पांच महीने के लिए 120 मेगावाट बिजली खरीद का प्रस्ताव किया। निगम 150 मेगावाट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन करती है। विनर्जी निगम से 5 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीदना चाहती है। निगम के अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद ने बताया कि इन प्रस्तावों को सरकार के पास भेजा जा चुका है। इस पर सरकार अंतिम फैसला करेगी। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड का दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के साथ बिजली का साझा करने संबंधी समझौता है। वह अपनी बिजली नहीं बेचता है। वैसे उत्तराखंड उत्तरी ग्रिड को करीब 50 लाख यूनिट बिजली सप्लाई करता है। प्रसाद ने बताया, 'मेरा मानना है कि पॉवर ट्रेडिंग कारपोरेशन जैसी बिजली कंपनियों को बिजली बेचना अच्छा सौदा हो सकता है।' निगम की स्थापित क्षमता 1,300 मेगावाट की है और वह वर्तमान में 770 मेगावाट उत्पादन करता है। निगम ने 2012 तक अपनी स्थापित क्षमता को 1,880 मेगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। सरकार ने राज्य में जलविद्युत को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना बर्नाई है। इसके तहत छोटी पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिए सहायता भी दी जा रही है। http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4403 |
पांच कंपनियों के नाम छांटे गए
उत्तराखंड सरकार ने पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए पांच कंपनियों के अभिरूचि पत्रों को छांटा है। |
उत्तराखंड सरकार की योजना कुमाऊं क्षेत्र में बसे इस शहर में हवाई अड्डे को विकसित करने की है। इसके अलावा सरकार की राज्य के सभी जिलों में हैलीपैड विकसित करने की भी योजना है। राज्य के नागरिक उड्डयन सचिव पी सी शर्मा ने कहा है कि पिथौरागढ़ हवाई अड्डे को विकसित करने के लिए हमने पांच कंपनियों की पहचान की है। उनका कहना है कि इन कंपनियों को कहा गया है कि ये अगले एक महीने के भीतर अपनी तकनीकी और वित्तीय बोलियां सरकार को भेज दें। शर्मा का कहना है कि सरकार ने इस हवाई अड्डे को विकसित करने के लिए 30 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। शुरूआत में वित्त मंत्रालय ने अभिरूचि पत्रों को आमंत्रित करने पर सवाल उठाया था। मंत्रालय ने नागरिक उड्डयन विभाग को सुझाव दिया था कि पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए विभाग को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिये काम करना चाहिए। लेकिन एक उच्च स्तरीय समिति की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि किसी भी कंपनी ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना में रूचि नहीं दिखाई है। इस समिति का मानना था कि इसके लिए केवल अभिरूचि पत्र ही एकमात्र विकल्प है। कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के विकास के लिए पिछले साल सरकार को 12 अभिरूचि पत्र प्राप्त हुए। उत्तराखंड की कंपनियों के अलावा मुंबई के अटलांटा समूह ने भी इस परियोजना में रूचि दिखाई है। हालांकि शर्मा ने उन कंपनियों का नाम नहीं बताया है जिनको इस परियोजना के लिए छांटा गया है। सरकार ने अभी तक पिथौरागढ़ हवाई अड्डे के लिए जमीन अधिग्रहण करने में 22 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। पिथौरागढ़ हवाई अड्डे को 48 से 72 सीटों वाले विमान के परिचालन के लिए विकसित किया जा रहा है। हवाई अड्डे को विकसित करने की कड़ी में 4800 मीटर लंबा गलियारा बनाया जाएगा। एक अलग टर्मिनल भी बनाया जाएगा। इसके अलावा सरकार की योजना चमोली और उत्तरकाशी जिलों में हवाई पट्टी को भी उन्नत करने की भी है। अपनी भौगोलिक स्थितियों की वजह से इन पट्टियों पर 20 से 50 सीटों वाले विमानों का परिचालन करना भी मुश्किल है। राज्य के 13 जिलों में हैलीपैड बनाने का काम भी अभी दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=3749 |
चारधाम की यात्रा में उमड़े श्रद्धालु
इस देवभूमि पर देश के तमाम भागों के लोग भजन-कीर्तन करते हुए बद्री, केदार, गंगोत्री, यमुनोत्री के पावन दर्शन करने के लिए चले आ रहे हैं।
सर्दियों में बर्फ से ढँके रहने वाले इस इलाके में मई के महीने में बद्रीनाथ, केदारनाथ के कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। हर वर्ष लाखों लोग मोक्ष प्राप्ति की इच्छा लिए दूर-दूर से यहाँ आते हैं।
इस बार यात्रियों और स्थानीय नेताओं ने यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की कमी की शिकायत की है। यात्रियों का कहना है कि इलाके में चोरों और जेबकतरों की भरमार है जो यात्रियों का सामान लूट लेते हैं।
एक स्थानीय भाजपा नेता ने इस संबंध में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने की अपील की है।
http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0805/22/1080522043_1.htm
पहाड़ पर अखबारों की जंग तेज
अखबारों की कीमतों में कमी करने को लेकर उत्तराखंड में जबर्दस्त प्रतियोगिता छिड़ी हुई है। पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अखबार कंपनियों ने कीमतों में 33 फीसदी तक की कटौती की है। |
अखबार की कीमतों में कमी करने की फेहरिस्त में देश के दो बड़े मीडिया घराने एचटी मीडिया लिमिटेड और सहारा इंडिया ग्रुप, अमर उजाला और दैनिक जागरण के नाम शामिल हैं। बीते दिनों एचटी मीडिया लिमिटेड ने घोषणा की कि वह अपने हिन्दी अखबार 'दैनिक हिन्दुस्तान' की कीमत में 1 रुपये की कटौती करेगा और अब अखबार तीन रुपये की जगह सिर्फ दो रुपये में मिलेगा। दैनिक हिन्दुस्तान ने अखबार को लोकप्रिय बनाने और उसकी बिक्री को बढ़ावा देने के लिए शहर के कुछ इलाकों में अखबार की मुफ्त प्रतियां बांटने का भी फैसला किया है। दैनिक हिन्दुस्तान ने अधिक से अधिक पाठकों को रिझाने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में रोड शो का आयोजन, उपहार बांटने और अन्य अभियान भी चलाएं हैं। उल्लेखनीय है कि हाल ही में एचटी मीडिया लिमिटेड ने दैनिक हिन्दुस्तान को देहरादून से लॉन्च किया था। इसके अलवा, सहारा इंडिया ग्रुप ने भी अपने हिन्दी दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' की कीमत में 33 फीसदी की कटौती की है। अब यह अखबार दो रुपये में मिलेगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सहारा को देहरादून में पिछले साल अक्टूबर में लॉन्च किया गया था। उल्लेखनीय है कि इस पहाड़ी राज्य में अमर उजाला और दैनिक जागरण का मार्केट बहुत बड़ा है। अब राज्य में हिन्दुस्तान और राष्ट्रीय सहारा जैसे अखबार लॉन्च हो चुके हैं और उनकी कीमतें भी घटा दी गई है। इसके मद्देनजर अमर उजाला और दैनिक जागरण ने भी कीमतों में कटौती कर दी है। अब ये दोनों अखबार दो रुपये में मिलेंगे। संवाददाताओं द्वारा इन दोनों अखबारों के मार्केटिंग अधिकारियों से पूछे जाने पर कि क्या किसी भय की वजह से उन्होंने कटौती की है तो उन्होंने इस विषय पर कुछ भी कहने से मना कर दिया। जागरण प्रकाशन लिमिटेड के निदेशक धीरेंद्र मोहन ने बताया, 'क्योंकि पेट्रोलियम प्रोडक्टों की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है इस लिए हमलोगों ने अखबार की कीमत को तीन रुपये की जगह दो रुपये में बेचने का फैसला किया है।' बाजार सूत्रों ने बताया है कि ज्यादातर बड़े समाचार पत्र पाठकों को रिझाने के लिए आक्रामक योजनाएं तैयार कर रहे हैं। इस बीच चंडीगढ़ स्थित ट्रिब्यून ने भी पाठकों में अपनी पैठ बढाने के लिए स्थानीय खबरों के लिए अलग से परिशिष्ट निकालने की योजना बनाई है। http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4400 |
पेड़ लगाना ही है जिनकी जिंदगी का मकसद
उत्तराखंड में सीमांत जिले पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक दामोदर राठौर पेड़ लगा चुके हैं। फिर चाहे वह दूर-दराज के डीडीहाट व चंपावत हों या मैदानी इलाके हल्द्वानी और बरेली हों। पेड़ों से उनके लगाव की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इंटर तक पढ़े दामोदर राठौर ने 1950 में ग्रामसेवक के तौर पर काम करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के आदेश पर वह पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पेड़ लगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। लगाने के लिए जो पौधे आते हैं वे आधे सूखे होते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद सिर्फ कागजों पर ही उस ओर ध्यान दिया जाता है।
सरकार की तरफ से इस फंड में आए धन का पूरा दुरुपयोग हो रहा है। दामोदर कहते हैं, 'यह सब बातें मुझे बहुत परेशान करती थीं। मैंने फैसला किया कि अब अपने बूते पेड़ लगाकर दिखाऊंगा और साबित करूंगा कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ मुमकिन है।' उन्होंने ग्राम सेवक का काम छोड़ दिया। 1952 से पेड़ लगाने की यह तपस्या अब तक अनवरत जारी है।
वह कुल 3 करोड़ 15 लाख 10 हजार 705 पेड़ लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में ज्यादातर पेड़ सिलिंग, उतीश और बाज के लगाए हैं। सिलिंग जल स्त्रोत के लिए वरदान होता है और उन्हें नया जीवन देता है। अब वह मेडिसन प्लांट भी लगा रहे हैं। ज्यादातर पेड़ ग्राम पंचायत की जमीन पर और कुछ व्यक्तिगत जमीन पर भी लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ लगाने के लिए इजाजत लेना बड़ा पेचीदगी भरा काम हैं। मैंने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे जहां भी वृक्ष विहीन जमीन मिलेगी वहां पेड़ लगा लूंगा। पौधों के लिए उन्होंने एक नर्सरी बनाई है।
बागवानी की किसी डिग्री के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति से सीखा है। प्रकृति ही मेरी पाठशाला है। परिवार में उनकी बीबी और 17 साल की एक बेटी है। लेकिन दामोदर कहते हैं कि उनके 3 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। लगाए गए पेड़ों को वह अपने बच्चे ही मानते हैं और उसी तरह उनकी देखभाल भी करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनकी तबीयत खराब ही रहती है, लेकिन 5 करोड़ पेड़ लगाने का जुनून उनमें नया जोश भरता है। वह डीडीहाट के पास 6900 फुट की ऊंचाई पर जंगलों के बीच कुटिया बना कर रहते हैं। घर का खर्च जुटाने के लिए उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती हैं। वह प्रार्थना भी करते हैं तो यही मांगते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा होने से पहले भगवान उन्हें अपने पास न बुलाए।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3101063.cms
अशोक लीलैंड 10 अरब रुपये से पकड़ेगी रफ्तार
ट्रक बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी अशोक लीलैंड लिमिटेड 1,000 करोड़ रुपये का ऋण लेकर भारत में नए संयंत्र लगाने की योजना बना रही है। |
कंपनी की योजना अगले दो साल में इस ऋण से वाणिज्यिक वाहन बनाने के लिए नए संयंत्र स्थापित करने की है। कंपनी के मुख्य वित्त अधिकारी के श्रीधरन ने बताया कि कंपनी यह ऋण 500-500 करोड़ रुपये की दो किस्तों में जुटाया जाएगा। इस रकम का निवेश कर कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करेगी और निर्यात को चार गुना कर लेगी। कंपनी को उम्मीद है कि नए संयंत्र की स्थापना के बाद वह सालाना 1,84,000 इकाई वाहनों का निर्माण कर लेगी। अशोक लीलैंड ने हाल ही में निसान मोटर्स के साथ हल्के ट्रक बनाने के लिए करार किया है। इन ट्रकों का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए कंपनी को अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करना पड़ेगा। भारत दुनिया भर में तेजी से उभरती हुई दूसरी अर्थव्यवस्था है और इसमें वाणिज्यिक वाहनों की मांग लगातार बढ़ रही है। भारत में ऋण लेना अशोक लीलैंड को महंगा पड़ेगा। एंजेल ब्रोकिंग लिमिटेड की विश्लेषक वैशाली जाजू के मुताबिक इस साल ब्याज दर पिछले सात सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर है। इस कारण कंपनी के मुनाफे में गिरावट आएगी। बुरा दौर भारतीय रिजर्र्व बैंक ने महंगाई दर के लगातार बढ़ने के बाद भी मार्च 2007 से ब्याज दर 7.75 फीसदी से ज्यादा नहीं की है। वाहनों की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण ग्राहक भी ट्रक खरीदने से बच रहे हैं। इस कारण पिछले वित्त वर्ष में अशोक लीलैंड के मुनाफे में 6.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान कंपनी का मुनाफा 34.8 फीसदी था। श्रीधरन ने कहा, 'ब्याज दर का लगातार बढ़ना हमारे लिए बहुत बुरी बात है लेकिन इस वजह से हम अपने विस्तार की योजनाओं को शुरू करने में और देर नहीं कर सकते हैं।' कंपनी की योजना आने वाले तीन साल में लगभग 32 अरब रुपये निवेश करने की है। इस साल अशोक लीलैंड के शेयरों की कीमत में लगभग 4.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले 2-3 साल में यह सबसे बड़ी गिरावट है। अशोक लीलैंड और जापानी कंपनी निसान मिलकर अपने संयुक्त उपक्रम में लगभग 2,300 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। इस संयुक्त उपक्रम के तहत मार्च 2011 तक हल्के ट्रकों का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। मार्च में ही अशोक लीलैंड ने घोषणा की थी कि कंपनी अपनी विस्तार योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए विदेश से करीब 800 करोड़ रुपये जुटाएगी। बड़ा विस्तार श्रीधरन ने बताया कि कंपनी उत्तराखंड में भी एक संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रही है। कंपनी की योजना 2010 तक इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता सालाना 50,000 करने की है। उन्होंने बताया कि कंपनी दक्षिण भारत में एन्नौर स्थित संयंत्र की उत्पादन क्षमता भी बढ़ाएगी। श्रीधरन ने बताया कि कंपनी की योजना अगले चार साल में निर्यात से प्राप्त होने वाले राजस्व को चार गुना बढ़ाकर सालाना 40 अरब रुपये करने की है। कंपनी की योजना श्रीलंका, पश्चिम एशिया, फिलिपींस और बंगलादेश में बिक्री बढ़ाने की भी है। अभी इन देशों में कंपनी हर साल 8,000 वाहन ही बेच पाती है। लेकिन कंपनी अगले चार साल में यह आंकड़ा 30,000 वाहन तक पहुंचाना चाहती है। इसके लिए अशोक लीलैंड जल्द ही एक या दो देशों में असेंबलिंग संयंत्र लगा सकता है। http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=4392 |