Monday, September 17, 2007

उत्तराखंड की आराध्य देवी हैं मां नंदा-सुनंदा

अल्मोड़ा। हर वर्ष उत्तरांचल की जनता द्वारा मां सुनंदा की पूजा-अर्चना पूर्ण भक्ति भाव के साथ की जाती है। प्रतिवर्ष भाद्र पद शुक्ल पक्ष आयोजित होने वाली नंदादेवी मेला समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की याद दिलाता है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मां नंदादेवी का मेला प्रत्येक वर्ष पर्वतीय क्षेत्र में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। मां नंदा को पूरे उत्तरांचल में विशेष मान मिला है। वेदों में जिस हिमालय को देवात्मातुल्य माना गया है नंदा उसी की पुत्री है। उत्तराखण्ड में मां नंदा का पूजन सर्वत्र किसी न किसी रूप में किया जाता है। नंदा के पूजन का एक अन्य स्वरूप नंदा की राजजात यात्रा के रूप में प्रत्येक बारह वर्ष में नौटी ग्राम के वेदिनी कुंड से आगे की होम कुंड की पर्वत श्रृंखलाओं में पूजन के साथ संपन्न होता है। जिसमें जन-जन जुड़ता है। यहां उल्लेखनीय है कि नंदा-सुनंदा की पूजा-अर्चना में नंदा जागर का विशेष महत्व है।

नंदा को उत्तरांचल में बड़ी श्रद्धा से पूजने की परंपरा शताब्दियों से है। मां नंदा के मान-सम्मान में उत्तरांचल के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिवर्ष मेलों का आयोजन किया जाता है। यह मेला अल्मोड़ा सहित नैनीताल, कोटमन्या, भवाली, बागेश्वर, रानीखेत, चम्पावत व गढ़वाल क्षेत्र के कई स्थानों में आयोजित होते है। मानसखण्ड में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि मां नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा सुख-शांति का अनुभव करता है। अल्मोड़ा का नंदादेवी मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। पंचमी तिथि को जागर के माध्यम से मां नंदा-सुनंदा का आह्वान किया जाता है। इसी दिन गणेश पूजन कर कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने की कामना की जाती है।

षष्टी तिथि को मां नंदा-सुनंदा की मूर्ति निर्माण को कदली वृक्षों को निमंत्रण दिया जाता है। अगले दिन सप्तमी तिथि को इन कदली वृक्षों को प्रात:काल ढोल-नगाड़ों के साथ नंदादेवी मंदिर परिसर में लाया जाता है। बाद में अपराह्न में चंद राजाओं के वंशजों द्वारा इन कदली वृक्षों का पूजन किया जाता है। रात्रि में इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के बाद में बकरे की भी बली दी जाती है। इसके अगले दिन नंदाष्टमी को दिन में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा मां नंदा-सुनंदा की पूजा-अर्चना की जाती है तथा रात्रि में चंद राजाओं के वंशजों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। यह पूजा तांत्रिक विधि से होती है। रात्रि को बकरों व भैंसा की बलि भी दी जाती है। अष्टमी को विशेष पूजा-अर्चना के बाद मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों की नगर परिक्रमा कराकर उन्हे जल में विसर्जित किया जाता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_3745537.html

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