चौखुटिया(अल्मोड़ा)। उत्तराखंड के जंगलों में बहुरंगी रंगत बिखेर देने वाले बुरांश व काफल के फूलों की अपनी एक अलग पहिचान है। बुरांश के फूल मार्च आखिरी से अप्रैल माह में खिलते है, लेकिन बारिश न होने से अबकी बार फीकापन नजर आ रहा है तथा बुराश के फूल गायब है। छुटपुट पेड़ों पर खिले भी है तो मुर्झाये हालत में। प्रकृति के बदलते स्वरूप से लोगों में निराशा है।
उत्तराखंड के विभिन्न जंगलों में बुरांश के वृक्ष करीब 5 हजार से 12 हजार फीट की ऊंचाई वाले भागों में पाये जाते है। इन दिनों इसके फूल प्रकृति की भव्यता व सुन्दरता में चार चांद लगा देते है तथा लोगों के मन को बरबस अपनी ओर लुभाते है। बुरांश के फूल चटक लाल रंग के होते है। कहीं-कहीं ऊंचे स्थानों पर सफेद फूल भी दिखाई देते है। बुरांश के फूल जहां मनोहारी दृश्य के दर्शन कराते है वहीं हमारे दैनिक जीवन में इनका विशेष महत्व भी है।
उत्तराखंड के तमाम जंगलों में पाये जाने वाले बुरांश के वृक्ष फरवरी के आखिर से पुष्पित होने लगते है तथा मार्च आखिर से अप्रैल माह में ये फूल जंगलों में बहुतायत खिले दिखाई देते है। गर्मी के प्रकोप के साथ ही ये फूल सूख कर जमीन में गिर जाते है। बुरांश के फूलों से गुणकारी जूस बनाया जाता है जो ह्दय रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है। साथ ही इसके अन्य कई उपयोग है। साथ ही पर्यटकों को भी बुरांश का फूल स्वत: ही अपने ओर खींचने की क्षमता रखता है।
वहीं इस बार जंगलों में बुरांश के फूलों की रंगत गायब है। कहीं-कहीं फूल खिले भी है तो बिल्कुल मुर्झाये है। कारण इस शीतकाल में बारिश का न होना व तेजाबी पाला गिरना है। इससे जंगलों में भी सूखे की हालत बनी है तथा बुरांश सहित अन्य वृक्षों की पत्तियां व कोपलें सूख गये है। जिससे जंगलों में फीकापन नजर आ रहा है। फूल व्यवसायी भी निराश है। क्योंकि लोग बुरांश के फूलों को जूस बनाने के लिये उपयोग करते है।
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