1942 आंदोलन: युवा इंकलाबियों के सेतु थे बहुगुणा
हेमवतीनंदन बहुगुणा के सिर पर था दस हजार का इनाम
देहरादून:हिमालय पुत्र हेमवतीनंदन बहुगुणा आधुनिक भारत की राजनीति की बड़ी शख्सीयतों में से एक थे। राष्ट्रीय आंदोलन में उनका अभूतपूर्व योगदान रहा विशेषकर भारत छोड़ों आंदोलन में उनके साहस की गाथा आज भी गाई जाती है। पौड़ी गढ़वाल के छोटे से गांव बुघाणी में 25 अप्रैल 1919 में जन्में हेमवतीनंदन बहुगुणा के पिता रेवतीनंदन बहुगुणा पेशे से कानूनगो थे। शुरुआती पढ़ाई श्रीनगर, देहरादून के बाद वे इलाहाबाद चले गए थे। 1942 में बहुगुणा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यननरत थे। उनका मन पाठ्यक्रम की पढ़ाई से अधिक क्रांतिकारी साहित्य में अधिक रमता था। इंकलाबियों के संपर्क में तो वह पहले से आ ही गए थे और साहित्य के प्रचार प्रसार में बहुत आगे रहते थे। विश्वविद्यालय में कांग्रेस का झंडा फहराने तथा अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर दस हजार रुपये इनाम रखा था।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने हेमवतीनंदन बहुगुणा के राजनीति दर्शन व योगदान पर शोध किया है। उनके द्वारा ऐसी जानकारी दी गई जो सरकारी रिकार्ड में ही दर्ज हैं और बहुत कम लोगों को इस बारे में पता है।
श्री धस्माना ने बताया कि अपने ऊपर दस हजार रुपये का इनाम होने के कारण स्व. बहुगुणा भूमिगत हो गए। उनके संपर्क गढ़वाल के क्रांतिकारियों से थे और वे नौजवानों का मार्गदर्शन करते रहते थे। इनाम घोषित होने पर हर दूसरे दिन बुघाणी स्थित उनके पिता के घर पर पुलिस के छापे पड़ने लगे। तंग आकर उनके पिता को पुलिस को लिखित बयान देना पड़ा कि उनका हेमवतीनंदन बहुगुणा से कोई संबंध नहीं है। इस कारण वे मदन उपनाम से घरवालों को पत्र लिखते थे। उनकी बहन दुर्गा ( सूबे के मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की मां) उनसे आनंदी नाम से पत्राचार करती थी। बहुगुणा जी पत्रों के माध्यम से गढ़वाल के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों तथा इंकलाबियों से संपर्क में रहते थे।
श्री धस्माना का कहना है कि अगस्त महीने में स्व. बहुगुणा भूमिगत रहे और उन्हें भारी परेशानी झेलनी पड़ी। अक्तूबर 1942 में इलाहाबाद के क्रिश्चन कालेज बैठक आयोजित हुई जिसमें बहुगुणा शामिल थे। पुलिस के छापे में कई लोग गिरफ्तार हुए और उन्होंने बहुगुणा के ठिकानों के बारे सारी बात पुलिस के समक्ष उगल दी। 24 अक्तूबर 1942 को पुलिस उनके गुरु प्रोफेसर रामप्रकाश त्रिपाठी के घर छापा मारा। वे पीछे के दरवाजे से साधु के वेश में भाग निकले। इसके बाद लंबे समय तक वे हुकूमत के खिलाफ जनसमुदाय को जोड़ते रहे। लेकिन 1943 में जामा मस्जिद के पास गिरफ्तार किये गए।
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