रुद्रप्रयाग। स्विट्जरलैंड के कोनी को गढ़वाली संस्कृति कुछ इस तरह से भा गई है कि वह पिछले छह वर्षों से यहां आकर पहाड़ी रहन सहन को अपनाए हुए है। साथ ही यहां की संस्कृति का बारीकी से अध्ययन कर रहे है।
वर्ष 2001 से लगातार उत्तराखंड आ रहे स्विट्जरलैंड के कोनी बताते है कि उत्तराखंड की संस्कृति को लेकर विदेशों में खूब चर्चाएं होती है। उनके दोस्त के कहने पर ही वह यहां आए तथा उन्हे यहां के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही यहां का शांत रहन सहन काफी पसंद है। उनका कहना है कि अब दिल्ली, मुंबई व अन्य बडे़ शहरों में विदेश जैसा वातावरण है, यहां तक कि मसूरी शांत जगह नहीं रही। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के कई स्थानों में आज भी प्रकृति का खजाना मौजूद है। जो उन्हे पिछले छह वर्षो से लगातार खींचता आ रहा है। कुमाऊं के कैसानी में उसे एक टोपी पसंद आई जो कि वह लगातार पिछले छह वर्षो से वह पहन रहा है। पेशे से फोटोग्राफर कोनी ने बताया कि जिस शांत की तलाश उसने पूरे विश्व में की वह उसे उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आकर मिली। यहां की प्राकृतिक छटा से प्रभावित हो वह कहता कि यहां पर्यटन की बहुत संभावनाएं है जिसे एक चरणबद्ध तरीके से बढ़ावा देने की जरूरत है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_3822820.html
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