Wednesday, October 10, 2007

आंदोलनकारी को न्याय की दरकार

चोपड़ा (रुद्रप्रयाग)। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान संसद कूच कर पूरे देश का ध्यान राज्य निर्माण की मांग की ओर आकर्षित करने वाले राजेंद्र सेमवाल की राज्य बनने की हसरत तो पूरी हो गई, लेकिन आज वह इस राज्य में घुटन महसूस कर रहा है। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वह मानसिक संतुलन खराब होने के कगार पर है।

29 नवंबर, 1995 को धारकोट निवासी राजेन्द्र सेमवाल ने अपने तेरह साथियों के साथ दिल्ली में संसद कूच के दौरान पुलिस बैरियर तोड़ कर संसद में घुसने का प्रयास किया। संसद में घुसने से पूर्व ही पुलिस ने इस सभी को गिरफ्तार कर जेल तिहाड़ जेल भेज दिया था। राजेंद्र व उसके साथी तेरह दिन तक जेल में रहे थे। सरकारी नौकरी के लिए लगातार प्रयास करने के बाद भी उन्हें शासन-प्रशासन की अनदेखी का शिकार होना पड़ा। पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में आंदोलनकारियों को सरकार ने नौकरी व पेंशन का लाभ दिया था, लेकिन राजेंद्र को न तो नौकरी मिली और नहीं पेंशन, बल्कि बार-बार शासन व प्रशासन स्तर पर कोरे आश्वासन ही मिलते रहे, जिसके चलते आज वह अपनी आजीविका चलाने के लिए भटक रहा है। आंदोलनकारी राजेन्द्र सेमवाल का कहना है कि वह कई बार आंदोलन से जुड़े हुए अपने सभी दस्तावेज शासन-प्रशासन के सामने रख चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भी पत्र भेज कर अपना दुखड़ा रोया है। उन्होंने पत्र में कहा कि सात माह पूर्व ही वह सभी आवश्यक कागजात जिला प्रशासन को उपलब्ध करा चुके है लेकिन इसके बाद भी उनके तरफ से कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया जा गया है। ऐसे में वह अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। उधर, संपर्क करने पर उपजिलाधिकारी ललित मोहन रयाल ने बताया कि आंदोलनकारी का पत्र प्रशासन को मिला है, जिसकी जांच की जा रही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_3800033.html

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