हरिद्वार। अगर हम समय रहते चेते नहीं तो आने वाले दिनों में गंगा में महाशीर व हिमालयन स्नो ट्राउट प्रजाति की मछलियां दिखना गुजरे जमाने की बात हो जाएगी। ग्लोबल वार्मिग सहित अवैध शिकार का सीधा असर गंगा में रहने वाले जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है। यही वजह है कि गंगा में महाशीर व हिमालयन ट्राउट की संख्या में निरंतर कमी दर्ज की जा रही है। इसे लेकर पर्यावरणविद् खासे चिंतित हैं।
गंगा के जल को महाशीर के निवास के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। हरिद्वार व इसके आसपास के क्षेत्र ऐसे हैं जहां कुछ वर्षो पहले तक महाशीर व हिमालयन ट्राउट को आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन अब स्थितियां बदलने लगी हैं। जानकारों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिग के कारण गंगा के जल का तापक्रम एक सेंटीग्रेड तक बढ़ा है जिस कारण गंगा में पाई जाने वाली महाशीर व हिमालयन ट्राउट की संख्या में निरंतर कमी दर्ज की जा रही है। इसके अलावा देवप्रयाग से लेकर ऋषिकेश व श्यामपुर क्षेत्रों में इन मछलियों का बड़े पैमाने पर शिकार किए जाने के कारण भी पर असर पढ़ा है। दूसरी ओर हिमालयन स्नो ट्राउट व महाशीर के वजन में भी कमी आंकी गई है। पहले जहां यह मछलियां 15 से 20 किलो वजन तक की होती थी वहीं अब इनके वजन में भी कमी आई है। जानकारों के अनुसार महाशीर व हिमालयन ट्राउट की संख्या घटने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि विगत कुछ वर्षो में अफ्रीका की मांसाहारी मछली क्लेरियस ग्लेरी पेनीस का गंगा में प्रवेश हुआ है। मछली के मांसाहारी होने के कारण यह इन दोनों ही प्रजाति की मछलियों को अपना निवाला बना रही है। बताया जाता है कि यह अफ्रीकन मछली खासतौर पर उन स्थानों पर पाई जा रही है जहां पानी का तापमान अधिक है इस लिहाज से हरकी पैडी व आसपास में ही उक्त मछली नजर आती है। पर्यावरणविद् एवं गुरूकुल कांगडी विवि के पार्यावरण विभाग के प्राचार्य डा. बीडी जोशी के अनुसार यदि समय रहते हम जागरूक नहीं हुए तो आने वाले दिनों में महाशीर व हिमालयन ट्राउट का दिखना कम हो जाएगा। उनके मुताबिक वर्तमान में गंगा प्रदूषण को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी, लेकिन यह उस हद तक नहीं कि आने वाले खतरे से बचा जा सके। उनके मुताबिक जल में आक्सीजन की मात्रा घटी है जो कि घातक संकेत है। आक्सीजन की कमी का असर मछली और उसके बच्चों पर पड़ रहा है।
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